गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक “गणपति बप्पा मोरिया” के जयकारे के गुंजन की धूम रहती है। गणपति बप्पा से जुड़े इस मोरया नाम के पीछे गणपति जी का मयूरेश्वर स्वरुप माना जाता है। गणेश-पुराण के अनुसार सिंधु नामक दानव के अत्याचार से बचने हेतु देवगणों ने गणपति जी का आह्वान किया। सिंधु-संहार हेतु गणेश जी ने मयूर को अपना वाहन चुना और छह भुजाओं वाला अवतार लिया। इसी वजह से इन्हें मयूरेश्वर अवतार कहा जाता है।
सनातन धर्म में गणपति जी आदिदेव माने जाते हैं तथा प्रथम पूजनीय हैं। गणेश पूजा के बगैर कोई भी मंगल कार्य प्रारंभ नहीं होता। इनकी पूजा के बगैर कार्य शुरू करना विघ्नों को न्यौता देना है।
क्यों किया जाता है गणपति विसर्जन: सनातन धर्म के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से श्री वेद व्यास जी ने भागवत कथा गणपति जी को लगातार 10 दिन तक सुनाई थी जिसे गणपति जी ने अपने दांत से लिखा था। दस दिन उपरांत जब वेद व्यास जी ने आंखें खोली तो पाया कि 10 दिन की अथक मेहनत के बाद गणेश जी का तापमान बहुत अधिक हो गया है तुरंत वेद व्यास जी ने गणेश जी को निकट के कुंड में ले जाकर ठंडा किया था इसलिए भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश स्थापना की जाती है तथा कर भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी अर्थात अनंत चतुर्दशी को उन्हें शीतल कर उनका विसर्जन किया जाता है।
गणेश जी को क्या है प्रिय: भगवान गणपति जल तत्व के अधिपति है इसी कारण भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी अर्थात अनंत चतुर्दशी को इनका पूजन कर इनकी मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। गणेशजी बुद्ध और केतु ग्रहाधिपति कहलाए जाते हैं। अतः इन्हें हरा और धुम्रवर्ण रंग अत्यधिक प्रिय है। दुर्वा (दूब), शमी-पत्र, इमली, केले तथा लौकी इनकी प्रिय वस्तु हैं। अतः गणपति जी के समक्ष इन वस्तुओं को अर्पण करना चाहिए। चतुर्थी तथा चतुर्दशी गणेश जी की प्रिय तिथियां है। अतः गणेश जी की न्यास ध्यान, पूजन और विसर्जन सदैव चतुर्थी या चतुर्दशी को किया जाना चाहिए। गणेश जी का प्रिय भोग मोदक और लड्डू हैं। लाल रंग के गुडहल के फूल (चाईना रोज) गणेश जी को प्रिय हैं। इनका प्रमुख अस्त्र पाश और अंकुश है।