कश्मीर का सपना देखना छोड़ दे पाकिस्तान-सुषमा स्वराज

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भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 71वें सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि यह व मंच है जहां दुनिया की सभी घटनाओं की चर्चा होती है। सुषमा स्वराज ने जम्मू कश्मीर के उरी में हुए हमले को लेकर पाकिस्तान पर जमकर निशाना साधा। सुषमा ने कहा कि हमने अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ जब भी दोस्ती का हाथ बढ़ाया है उसने हमेशा पीठ में छुरा ही खोपा हैं। सुषमा ने कहा आतंकवाद के खात्में के लिए दुनिया को आगे आना होगा और अगर कोई देश इस नीति में शामिल नहीं होना चाहता उन्हें अलग-थलग कर देना चाहिए।

जिनके अपने घर शीशे के हो उन्हें दूसरों के घर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए
सुषमा ने कहा, ‘‘21 तारीख को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने इसी मंच से मेरे देश में मानवाधिकार उल्लंघन के निराधार आरोप लगाए थे। मैं केवल यह कहना चाहूंगी कि दूसरों पर मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाने वाले जरा अपने घर में झांककर देख लें कि बलूचिस्तान में क्या हो रहा है और वे खुद वहां क्या कर रहे हैं। बलूचियों पर होने वाले अत्याचार तो यातना की पराकाष्ठा है।’’ उन्होंने पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए कहा कि जिनके अपने घर शीशे के बने हों, उन्हें दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिये।

जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा, पाकिस्तान उसे छीनने का ख्वाब देखना छोड दे
पाकिस्तान पर चुटकी लेते हुए सुषमा ने कहा कि हमारे बीच एेसे देश हैं जहां संयुक्त राष्ट्र की आेर से नामित आतंकवादी स्वतंत्र रूप से विचरण कर रहे हैं और दंड के भय के बिना जहरीले प्रवचन दे रहे हैं। उनका इशारा मुम्बई आतंकी हमले के मुख्य साजिशकर्ता और जमात उद दावा के प्रमुख हाफिज सईद की आेर था। उन्होंने कहा,‘‘जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा था, है और रहेगा और पाकिस्तान उसे छीनने का ख्वाब देखना छोड दे।’’

आतंकवाद को पालना कुछ देशों का शौक
सुषमा ने कहा,‘‘दुनिया में एेसे देश हैं जो बोते भी हैं तो आतंकवाद, उगाते भी हैं तो आतंकवाद, बेचते हैं तो भी आतंकवाद और निर्यात भी करते हैं तो आतंकवाद का। आतंकवादियों को पालना उनका शौक बन गया है। एेसे शौकीन देशों की पहचान करके उनकी जबावदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए।’’ उन्होंने कहा,‘‘हमें उन देशों को भी चिन्हित करना चाहिए जहां संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादी सरेआम जलसे कर रहे हैं, प्रदर्शन निकालते हैं, जहर उगलते हैं और उनके पर कोई कार्यवाही नहीं होती। इसके लिए उन आतंकवादियों के साथ वे देश भी दोषी हैं जो उन्हें एेसा करने देते हैं। एेसे देशों की विश्व समुदाय में कोई जगह नहीं होनी चाहिए।’’ उन्होंनेे विश्व समुदाय से एेसे देशों को अलग थलग करने का आह्वान किया।

बातचीत को लेकर सुषमा ने पाकिस्तान को सुनाई खरी-खरी
भारत पर बातचीत के लिए पूर्व शर्त लगाने के पाकिस्तान के दावे को सिरे से खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि उसने इस्लामाबाद के साथ किसी शर्त के आधार पर नहीं बल्कि दोस्ती के आधार पर बातचीत शुरू की लेकिन इसके बदले पठानकोट मिला, उरी पर आतंकी हमले के रूप में बदला मिला। विदेश मंत्री ने कहा,‘‘दूसरी बात पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कही कि बातचीत के लिए जो शर्त भारत लगा रहा है, वो हमें मंजूर नहीं है। कौन सी शर्तें? क्या हमने कोई शर्त रखकर न्यौता दिया था शपथ ग्रहण समारोह में आने का? जब मैं इस्लामाबाद गई थी, हर्ट ऑफ एशिया कांफ्रेंस के लिए, तो क्या हमने कोई शर्त रखकर समग्र वार्ता शुरू की थी?’’ उन्होंने कहा,‘‘जब प्रधानमंत्री मोदी काबुल से चलकर लाहौर पहुंचे थे तो क्या किसी शर्त के साथ गए थे? किस शर्त की बात हो रही है?’ सुषमा ने कहा, ‘‘हमने शर्तो के आधार पर नहीं बल्कि मित्रता के आधार पर सभी आपसी विवादों को सुलझाने की पहल की और दो साल तक मित्रता का वो पैमाना खड़ा किया जो आज से पहले कभी नहीं हुआ। ईद की मुबारकबाद, क्रिकेट की शुभकामनाएं, स्वास्थ्य की कुशलक्षेम, क्या ये सब शर्तो के साथ होता था ?’’

आतंकवाद पर समग्र संधि (सीसीआईटी) को जल्द किया जाए पारित
उन्होंने कहा कि आतंकवाद पर समग्र संधि (सीसीआईटी) का 1996 से भारत ने प्रस्ताव दे रखा है। बीस साल गुजर गए मगर आज 2016 में भी हम सीसीआईटी को अंंजाम तक नहीं पहुंचा सके। सुषमा ने कहा,‘‘इसी कारण से हम कोई एेसा अंतरराष्ट्रीय मानक नहीं बना सके, जिसके अंतर्गत आतंकवादियों को सजा दी जा सके या उनका प्रत्यर्पण हो सके। इसीलिए आप सबसे मेरा अनुरोध है कि यह सभा पूरे दृढ़ निश्चय के साथ जल्द सीसीआईटी को पारित करे।’’ विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘अधिकांश देशों का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र 1945 की वैश्विक परिस्थिति के अनुरूप सिर्फ कुछ ही देशों के हितों की रक्षा न करे। चाहे वह किसी संस्था की बात हो या मुद्दों की, हमें आज की वास्तविकता और चुनौतियों के अनुसार काम करना होगा। आज सुरक्षा परिषद की स्थायी और अस्थायी दोनों सीटों में विस्तार की आवश्यकता है जिससे सुरक्षा परिषद समकालीन बन सके।’

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