कुंतक का आविर्भाव भारतीय काव्यशास्त्र में अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है – डॉ मोहन गुप्त

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उज्जैन – ईपत्रकार.कॉम |अखिल भारतीय कालिदास समारोह के अंतर्गत आयोजित हो रहे सारस्वत कार्यक्रम के तहत बुधवार को कालिदास संस्कृत अकादमी के अभीरंग नाट्यगृह में पंडित सूर्यनारायण व्यास व्याख्यानमाला में कुंतक की कालिदासीय समीक्षा पर व्याख्यान सत्र आयोजित किया गया कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉक्टर मोहन गुप्त ने की।

भोपाल से आए प्रोफेसर राधावल्लभ त्रिपाठी ने महाकवि कुंतक की कालिदासीय समीक्षा का विस्तार से वर्णन करते हुए व्याख्यान दिया, जिसका बुद्धिजीवी और साहित्य प्रेमी दर्शकों ने रसास्वादन किया।

कार्यक्रम का संचालन श्री अशोक वक्त ने किया। इस अवसर पर कालिदास संस्कृत अकादमी के निदेशक श्री आनंद सिन्हा भी मौजूद थे। सर्वप्रथम अतिथियों द्वारा मां सरस्वती और पंडित सूर्यनारायण व्यास के चित्र के समक्ष पुष्पांजलि अर्पित की गई।
व्याख्यान देते हुए प्रोफेसर त्रिपाठी ने कहा कि कुंतक आज से लगभग 1000 साल पहले हुए थे।काव्यशास्त्र के विचारकों में उनकी उत्प्रेक्षा समय-समय पर होती रही है। उन्होंने समग्र विन्यास और साहित्य की सभी संरचनाओं का वाद किया है। कुंतक का कहना है कि शक्ति का स्पंदन करना ही शिव का कार्य है।

शिव के अंदर से उत्पन्न हुए स्पंदन से ही सृष्टि की रचना की गई है। कुंतक एक ऐसे अकेले आचार्य हैं जो काव्य ग्रंथों की विशेषतया , कालिदास के काव्य ग्रंथों की व्यावहारिक समीक्षा करते हैं। कालिदास की समीक्षा जितनी विस्तृत रूप से कुंतक ने की है उतनी और किसी आचार्य ने नहीं की। कुंतक ने कालिदास के ग्रंथ रघुवंश, मेघदूतम्, अभिज्ञानशाकुंतलम की विस्तृत मीमांसा की है। उन्होंने कई प्रसंगों का अत्यंत मार्मिक वर्णन किया है। वक्रोक्ति ही कुंतक की अवधारणा रही है और वे भव्य रुप से कालिदास की रचनाओं में इसका वर्णन करते हैं।

कुंतक ने विभिन्न स्थानों पर इस पद की व्याख्या की है। कुंतक ने सुकुमार मार्ग की भी अत्यंत गहरी विवेचना की है। कालिदास की पारिवारिक जीवन की परिकल्पना को कुंतक ने गर्वित किया है। उन्होंने शब्द और अर्थ के बीच के तनाव और प्रतिस्पर्धा को भी बेहद सुंदरता से वर्णित किया है। कुंतक कहते हैं कि महाकवि कालिदास ने स्त्रीलिंग और स्त्री जाति की सम्वेदनाओं को प्रधानता देते हुए उनकी भावनाओं को परिलक्षित किया है। महाकवि कालिदास को यह पहचान भली-भांति थी की स्त्री किसी भी भावना को पुरुष से बेहतर रूप से व्यक्त कर सकती है।

कुंतक कवि कालिदास की कई रचनाओं को लड़ियों की भांति सभी के मनों में अलंकृत करते हैं।कुंतक ने कहा है कि कालिदास की रचनाओं में बहुत सारी वक्रोक्तियाँ आती हैं। कुमारसंभवम् में भी कुंतक ने इसका विस्तृत उल्लेख किया है। माता सीता का श्रीराम द्वारा परित्याग किए जाने का भी अत्यंत मार्मिक वर्णन कुंतक द्वारा किया गया है। सत्य को स्वीकार कर लेना ही वक्र का एक प्रकार है। कुंतक ने रघुवंश और शाकुंतल मैं भी इसकी भी विस्तार से मीमांसा की है। कुमारसंभव में पार्वती और शंकर के श्रंगार को भी साहसिक रूप से परिभाषित किया है। कुंतक महाकवि कालिदास के इस वर्णन की प्रशंसा करते हैं।

डॉ मोहन गुप्त ने इस अवसर पर कहा कि आज का व्याख्यान मुख्य रूप से एक शास्त्रीय व्याख्यान है। कुंतक और उनके व्यक्तित्व को एक सरल सहज भाषा में लोगों के बीच में व्यक्त करना हमारा प्रयास है।कुंतक भारतीय महाकाव्य के महान और विद्वान आचार्य में से एक रहे हैं।

संरचना की बात आती है तो कुंतक का ही स्मरण हो जाता है। शब्द और अर्थ के परस्पर संबंध को बता कर विश्व के सामने बेजोड़ संरचना कुंतक ने की है। कोई भी सपाट बयान या वाक्य कविता नहीं हो सकती।

किसी वस्तु के स्वभाव का यथावत निरूपण कुंतक ने किया है। उन तक का मानना था की काव्य भाषा और सामान्य भाषा में बहुत अंतर होता है। कुंतक का योगदान भारतीय काव्यशास्त्र में अद्भुत रहा है। इनके ग्रंथों का और सरल वर्णन तथा प्रचार-प्रसार आमजन में किया जाना चाहिए। आचार्य कुंतक की विशेषता यह रही है कि उन्होंने किसी भी काव्य ग्रंथ की व्यावहारिक समीक्षा की है। किसी भी देश और काल की परिस्थिति से कवी और सहृदय व्यक्ति , दोनों प्रभावित होते हैं। कुंतक इसका एक अद्वितीय उदाहरण हैं। उन्होंने भारतीय काव्यशास्त्र में अभूतपूर्व योगदान दिया है और महाकवि कालिदास के ग्रंथों की वृहद मीमांसा की है। कुंतक का आविर्भाव भारतीय काव्यशास्त्र में अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है। कुंतक ने वक्रोक्ति को संपूर्ण काव्य का आधार माना है। डॉक्टर गुप्त ने व्याख्यान में शामिल हुए सभी बुद्धिजीवी लोगों का आभार व्यक्त किया। इसके पश्चात आचार्य रेवा प्रसाद द्विवेदी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

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