नवजात शिशु व माताओं को पौष्टिक व संतुलित आहार दिया जाना बेहद जरूरी है

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बच्चे आने वाले देश का भविष्य है इसलिए इन्हें कुपोषण से बचाया जाए। नवजात शिशु व माताओं को पौष्टिक व संतुलित आहार दिया जाना बेहद जरूरी है। हम अपने दैनिक जीवन में पौष्टिक और संतुलित आहार के माध्यम से कई बीमारियों से बच सकते हैं। यही भोजन हमें कुपोषण से भी मुक्ति दिला सकता है। किसी भी बीमारी से बचाव उसके इलाज से कई ज्यादा बेहतर होता है। यह बात बुधवार को राष्ट्रीय पोषण सप्ताह पर एकीकृत बाल विकास सेवा द्वारा कलेक्ट्रेट सभागार में आयोजित मीडिया कार्यशाला में प्रभारी कलेक्टर फ्रेंक नोबल ए ने कही।

मीडिया कार्यशाला में प्रभारी कलेक्टर श्री नोबल ए ने कहा कि आज कुपोषण की एक सबसे बड़ी समस्या फूड हेबिट है। इसके कारण मानव की जीवन्तता भी कम हो गई है। हमें इस पर विचार करना चाहिये। साथ ही पोषणयुक्त भोजन करना चाहिये। उन्होने छतों पर किचिन गार्डन विकसित करने पर भी जोर दिया। प्रभारी कलेक्टर ने कहा कि जिला प्रशासन भी इस दिशा में प्रभावी कदम उठायेगा।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय पोषण सप्ताह 1 से 7 सितंबर तक मनाया जा रहा है। जिसके तहत मीडिया कार्यशाला का आयोजन महिला एवं बाल विकास द्वारा किया गया था। कार्यशाला में कुपोषण पर आमजन में प्रचलित विभिन्न भ्रातियों पर भी प्रकाश डाला गया। साथ ही बताया गया कि भारत में कुपोषण के कारण बच्चों में कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां व समस्याएं आती है। बाल मृत्यु को कम करने के लिए जन्म के छः माह तक केवल मॉ का दूध देना एक बहुत ही कारगर कदम है। इसके साथ ही बच्चे को सारे पौष्टिक तत्व प्राप्त होते हैं। इसके पश्चात छः माह के बाद बच्चे को कौन सा आहार दिया जाना चाहिए और उसके क्या क्या लाभ है इस पर भी कार्यशाला में पॉवर पांईट प्रेजेंटेशन के माध्यम से विशेषज्ञों द्वारा बताया गया।

बच्चों को उम्र के अनुसार पर्याप्त गुणवत्ता, मात्रा का निरंतर आहार प्रदाय किये जाने, आहार की तरलता, उसकी मात्रा और पर्याप्त गाढ़ेपन वाले उपरी आहार दिये जाने पर चर्चा की गई। इसके साथ ही उन्हें मौसमी फल और सब्जियां भी निर्धारित मात्रा में खिलाने के तरीकों के बारे में बताया गया। विशेषज्ञों द्वारा बताया गया कि हरी व पत्तेदार सब्जियां संपूर्ण मात्रा में बच्चों और गर्भवती माताओं को खिलायी जाएं, इसके साथ ही छोटे बच्चों को भोजन कराते समय स्वच्छता का भी विशेष ध्यान रखा जाए।

सिविल सर्जन डॉ. के.पी. श्रीवास्तव ने कहा कि अगली पीढ़ी के बच्चों को जन्म देने वाली माताओं का गर्भावस्था के दौरान विशेष ध्यान रखा जाना जरूरी है। वर्तमान में लोगों के खानपान के तरीकों मे कॉफी बदलाव आया है। इसलिए शिशु व माता को संतुलित आहार उपलब्ध करवाना बेहद जरूरी है।

परियोजना अधिकारी बहोरीबंद ने बताया कि लोगों में यह भ्रांति है कि गरीब परिवार के बच्चे ही कुपोषित होते है परंतु ऐसा नही है। वर्तमान में समझदार पढ़ेलिखे और आर्थिक रूप से संपन्न परिवार के बच्चें भी कुपोषण के शिकार हो सकते है। इसिलिए लोगों को अपने बच्चों को पोष्टिक आहार देना चाहिए तथा बाजार में मिलने वाले फास्ट फूड और डिब्बा बंद खाद्य पदार्थो से बच्चों को दूर रखना चाहिए।

प्रभारी जिला कार्यक्रम अधिकारी इन्द्रभूषण तिवारी ने कहा कि छोटे व टूटते हुए परिवारों के कारण बच्चों को संपूर्ण पोषण नही मिल पा रहा है इसलिए इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके साथ ही गर्भवती माताओं को सौ दिनों तक प्रतिदिन दी जाने वाली आयरन की गोलियां दूध के साथ नही दी जानी चाहिए। क्योंकि दूध में मौजूद केल्शियम और आयरन का मेल ठीक नहीं होता है।

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