सिंधु जल संधि के बरकरार रखने की उम्मीद कम लगती है: संयुक्त राष्ट्र

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सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष के समाधान का जीवंत उदाहरण रहा है, लेकिन 1990 के दशक की शुरुआत में पानी की कमी ने इस संधि में तनाव पैदा किया और इसके कायम रहने की उम्मीद कम लगती है।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह बात की गई है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की ‘विकास पैरोकार पाकिस्तान’ नामक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘यह संधि दो मुद्दों का हल करने में विफल रही है। पहला मुद्दा शुष्क मौसम में नदी का प्रवाह कम होने पर भारत और पाकिस्तान के बीच जल के बंटवारे का है तथा दूसरा मुद्दा पाकिस्तान में चिनाब नदी के प्रवाह पर पानी की कमी के सामूहिक असर का है।’’

रिपोर्ट के अनुसार झेलम और नीलम नंदियों पर वुलार बैराज और किशनगंगा परियोजना इसी तरह की समस्या को सामने रखती हैं जहां रबी की फसल के दौरान पानी की कमी की स्थिति गंभीर हो जाती है और खरीफ के दौरान प्रवाह 20 फीसदी तक रह जाता है। यह रिपोर्ट जारी की गई। इसमें कहा गया है, ‘‘40 वर्षों से सिंधु जल संधि ने विवाद के समाधान का अनोखा उदाहरण रही है।

1990 के दशक की शुरुआत में पानी की कमी ने संधि में तनाव पैदा किया। हकीकत यह है कि अब इस संधि के कायम रहने की उम्मीद बहुत कम लगती है, हालांकि इस संधि से बाहर निकलने की कोई वजह नहीं है।’’ रिपोर्ट में कहा गया है कि सीमा पार जल संधियों के मुद्दों को लेकर जागरूकता हालन के समय का चलन है और इसको लेकर व्यवस्थागत ढंग से अध्ययन की जरूरत है।

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