हर काम में उत्तम फल देते हैं शुभ मुहूर्त

0

यूं तो किसी के काम के सफल-असफल होने के लिए मेहनत और किस्मत को प्रबल माना जाता है, लेकिन ज्योतिषीय दृष्टि से किसी कार्य का शुभारम्भ करने से उसके परिणाम और भी फलदाई होते हैं।

आज के दौर में व्यक्ति हर कार्य का शुभारम्भ ज्योतिषीय व धर्मशास्त्रीय दृष्टि से करना चाहता है। इसीलिए वह कार्यारम्भ के साथ ही फलप्राप्ति की भी इच्छा रखता है। यूं तो काल बली है और हर श्रम के साथ किए काम में हमें सफलता मिलती है, लेकिन ज्योतिषीय दृष्टि से किसी कार्य का शुभारम्भ करने से उसके परिणाम ओर भी फलदाई माने गए हैं।

भवन निर्माण के लिए मुहूर्त
गृह निर्माण से लेकर नलकूप, पार्क व यंत्र स्थापना हालांकि कुछ लोग अपनी सुविधा के अनुरूप कार्य संपादित कर लेते हैं, लेकिन ज्योतिष और वास्तु के अनुरूप कार्य का आरम्भ करने से उस कार्य में काफी हद तक लाभ की संभावना बढ़ जाती है। देवर्षि नारद के अनुसार (नारदस्मृति में), वशिष्ठ वास्तुदृष्टि से वैशाख, श्रावण, मार्गशीर्ष व फाल्गुन मास सभी कार्यों के लिए उत्तम माने गए हैं।

नारद के अनुसार भवन निर्माण के लिए कार्तिक, माघ, मार्गशीर्ष फाल्गुन व वैसाख मास श्रेष्ठ माने गए हैं। इन्हें वशिष्ठ की दृष्टि में पुत्र-पौत्र व धनकारक माना गया है। इन महीनों को वाद-विवाद रहित सर्वसम्मत अर्थकारक पत्नी व पुत्र आदि के लिए भी हितकारी माना गया है। वास्तुशास्त्र के अनुसार जल, अग्नि से नष्ट गृह या पुराने भवन को नवीन बनाने में श्रावण-कार्तिक व माघ मास को लाभप्रद माना गया है। देवताओं के वास, जल के लिए नलकूप, बोरिंग या पार्क में जल सिंचन के लिए वैशाख, श्रावण मागशीर्ष, फाल्गुन, कार्तिक व माघ महीनों को भी पुण्यकारी माना गया है।

उल्लेखनीय है कि पशुओं का आवास बनाने के लिए ज्येष्ठ मास, धान्य संग्रह, आश्विन, जल धारा व यंत्र निर्माण चैत्र में और भी ज्यादा शुभकारी माने गए हैं। महर्षि वशिष्ठ के मतानुसार गुरु व शुक्र उदय हो तो शुक्ल पक्ष के गृहारम्भ में सब प्रकार के सुखों की प्राप्ति तथा कृष्णपक्ष निर्माण से तस्करी भय, दिन में गृहारम्भ शुभ व रात्रि में निषिद्ध माना गया है। वैसे उत्तमकाल के अनुरूप कार्य सम्पादित किए जा सकते हैं।

वार एवं नक्षत्रों के अनुरूप कार्य
ज्योतिष में नक्षत्र एवं वार के अनुसार कार्य हो तो काम के पूर्ण होने की संभावना बढ़ जाती है। तीनों उत्तरा, रोहिणी, साथ ही रविवार में गृहारम्भ, बगीचे सम्बंधी कार्य। स्वाती, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा और सोमवार में घुड़सवारी, बोरिंग व जलसम्बंधी कार्य। यात्रा, तीनों पूर्वा, भरणी, मघा और मंगलवार को अग्नि सम्बंधी कार्य, शस्त्र सम्बंधी कार्य तथा विशाखा, कृत्तिका और बुधवार को विशेषकर हवन। हस्त, अश्विन, पुष्य, अभिजित् और गुरुवार को दुकान, शास्त्रादिज्ञानारम्भ, मृगशिर, रेवती, चित्रा, अनुराधा और शुक्रवार को गीत सम्बंधी कार्य तथा मूल, ज्येष्ठा, आद्र्रा, आश्लेषा और शनिवार को जादूगरी, शिक्षा सम्बंधी कार्य सिद्धिदायी माने गए हैं।

कन्या वरण के लिए
कन्या वरण के लिए उत्तराषाढ़ा, अनुराधा, कृत्तिका, श्रवण, तीनों पूर्वा, धनिष्ठा, तथा विवाहोक्त नक्षत्रादिकों में वस्त्र व गहने आदि वस्तु सहित फल-फूलों के साथ सगाई करना श्रेष्ठ माना जाता है।

वर वरण के लिए
वर वरण के लिए योग्य विद्वान या कन्या का सहोदर भाई शुभवार की दृष्टि से या शुभ नक्षत्रों सहित तीनों पूर्वा, कृतिका, मंगलगीतों सहित वस्त्राभूषण व जनेऊ सहित वर का वाग्दान करना चाहिए।

Previous article13 अक्टूबर 2017 शुक्रवार, पंचांग एवं शुभ – अशुभ मुहूर्त
Next articleहमीदिया चिकित्सालय के निर्माण कार्य समय- सीमा में पूर्ण करें – संभागायुक्त श्री श्रीवास्तव

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here