UP में 11 फरवरी को 73 सीटों के लिए होगा मतदान

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मतदान का बिगुल बज चुका है. शनिवार 11 फरवरी को पहले चरण के मतदान के लिए जिन 73 सीटों पर मतदान होना है, वहां के लिए चुनाव प्रचार गुरुवार की शाम 5:00 बजे थम गया.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिन 15 जिलों में शनिवार को चुनाव होना है, उसके लिए उम्मीदवारों ने आखिरी दिन पूरी ताकत झोंक दी. पहले चरण में जिन जिलों में चुनाव होना है वह हैं कैराना, मुजफ्फरनगर, शामली, हापुड़, बुलंदशहर, गाजियाबाद, मेरठ, हाथरस, गौतम बुद्ध नगर, आगरा, मथुरा, फिरोजाबाद, एटा कासगंज और बागपत.

11 फरवरी को जिन नेताओं की किस्मत का फैसला होना है उनमें राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा, कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता प्रदीप माथुर, भाजपा के उपाध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेई, हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह और दंगो में चर्चित रहे सुरेश राणा और संगीत सोम शामिल हैं.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इन इलाकों में जाट और मुस्लिम काफी हद तक राजनीति की दशा और दिशा तय करते हैं. पूरे उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मुस्लिम इन्हीं इलाकों में हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की आबादी 26 फीसदी दी है जब पूरे राज्य में मुसलमानों की आबादी 17 फीसदी है.

पहले चरण के चुनाव में सबसे ज्यादा जीने मरने का सवाल बहुजन समाज पार्टी का होगा जिसकी इस इलाके में मजबूत पकड़ है. 2012 के विधानसभा चुनाव में जब पूरे राज्य में समाजवादी पार्टी की हवा थी तब भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीएसपी ने अच्छा प्रदर्शन किया था. इस बार बहुजन समाज पार्टी ने सबसे ज्यादा मुसलमानों को टिकट देकर दलित-मुस्लिम गठजोड़ को आजमाया है. यह गठजोड़ काम कर रहा है या नहीं इसकी भी परीक्षा पहले चरण में ही हो जाएगी.

बहुजन समाज पार्टी की इस चाल को नाकाम करने के लिए ही समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से हाथ मिलाया है ताकि मुस्लिम वोट उसकी झोली में आएं. मुजफ्फरनगर के दंगे, कैराना का पलायन, मथुरा का जवाहर बाग कांड और दादरी में बीफ कांड में अखलाक की हत्या ऐसे मुद्दे हैं जिसे बीजेपी हर हालत में भुनाना चाहेगी.

लोकसभा चुनाव के समय मुजफ्फरनगर दंगों के बाद के माहौल में बीजेपी ने यह पूरा इलाका जीत लिया था. बीजेपी की कोशिश होगी की वैसा ही शानदार प्रदर्शन फिर से दोहराया जाए. लेकिन बीजेपी के लिए लोकसभा चुनाव जैसा शानदार प्रदर्शन करना बेहद मुश्किल होगा क्योंकि उस वक्त जाट मतदाताओं ने जमकर बीजेपी का साथ दिया था. लेकिन अब आरक्षण नहीं दिए जाने से जाट मतदाता बीजेपी से नाराज हैं और इसी नाराजगी का फायदा उठाने के लिए अजीत सिंह का राष्ट्रीय लोकदल पूरी ताकत लगा रहा है.

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