डच शोधकर्ताओं का दावा है कि महिलाएं गर्म कमरों और ऑफिसेज में ज्यादा बेहतर तरीके से काम कर सकती हैं। हैरानी होगी आपको यह जानकर कि पुरुषों की तुलना में बॉडी फैट ज्यादा होने के बाद भी महिलाओं का शरीर ठंडा रहता है।
फीमेल बॉडी का कोर टेम्प्रेचर बॉडी फैट के कारण ज्यादा होता है, क्योंकि वसा गर्मी बनाए रखने में मददगार है। लेकिन उनकी मेटाबोलिक रेट कम होती है। यही वजह है कि बॉडी फैट ज्यादा होने के बाद भी उनकी बॉडी अंदर से ठंडी रहती है।
पुरुषों में मांसपेशियां ज्यादा होने से शरीर में गर्मी जल्द फैलती है। उनका शरीर जल्दी ठंडा हो जाता है। उनका मेटाबोलिक रेट भी ज्यादा होता है। मेटाबॉलिज्म से ही एनर्जी आती है। जैसे कि इसी प्रोसेस से खाना डाइजेस्ट होता है। बॉडी में एनर्जी बनती है।
गौरतलब है कि जिन महिलाओं का ज्यादातर समय बैठे-बैठे निकलता है, उनकी मेटाबोलिक रेट मर्दों से 35 फीसदी कम होती है। इससे उनके शरीर में कम गर्मी पैदा होती है। इससे वे भीतर से ज्यादा ठंडा महसूस करती हैं।
शोध में इस बात का खुलासा हुआ है किएक महिला के शरीर में ऐसे अंदरूनी फंक्शन्स होते हैं, जिनके द्वारा शरीर के तापमान को एक स्थान पर केन्द्रित किया जाता है।इसमें शरीर के बाह्य अंग (जैसे उंगलियां) तापमान का निर्धारण करती हैं।
बढ़ता-घटता फीमेल बॉडी टेम्प्रेचर
पीरियड और हार्मानल साइकिल भी इसके लिए जिम्मेदार है। उनकी बॉडी में जो एस्ट्रोजन हार्मोन होता है, वह खून को इतना गाढ़ा बना देता है कि खून पतली रक्त-वाहिकाओं में नहीं जा पाता, खासकर हाथ, पांव और कानों में।
एस्ट्रोजन रक्त वाहिकाओं को ठंड के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनाता है। एक महिला के शरीर का तापमान बढ़ता-घटता रहता है। ये 36.9 डिग्री से 37.4 डिग्री के बीच उतरता-चढ़ता रहता है, जबकि पुरुषों के शरीर का तापमान 37 डिग्री पर स्थिर रहता है।
रक्त का बहाव संकीर्ण
ठंडे मौसम में एक महिला के हाथ और पैर में रक्त का बहाव बहुत कम हो जाता है। अगर एक आदमी और औरत को समान तापमान में रखा जाए,तो औरत के शरीर में रक्त का बहाव संकीर्ण होगा। इससे भी महिलाओं को ठंडक ज्यादा महसूस होती है।