फिल्म अपने संवादों के जरिए बार-बार हमें झकझोरती रहती है। ‘वो वक्त नहीं रहा अब‘ संवाद देश के आज के हालात पर सटीक बैठता है। ‘मामला पॉलिटिकल है‘ संवाद फिल्म में दो-तीन बार बोला गया है और सच्चाई के करीब भी है। ‘विद्युत विभाग में हूं, एई हूं, चार घर में मीटर पर रेड मारूंगा न, दो हजार मिल जाएंगे।‘ संवाद हमारे देश की अफसरशाही पर करारा व्यंग्य है।
फिल्म के बीच में संजय मिश्रा का एक और संवाद है ‘मैं सफीना और शाहरुख। तीनों। अपना भोपाल, अपना जावेद, अपना सैयद। पर पता नही क्यों नहीं गए। ऐसा क्या था, मेरे शहर की मिट्टी में‘।
इसके बाद फिल्म का अंत हमें सन्न कर देता है। आज के दौर में मीडिया और पुलिस की भूमिका पर सवाल छोड़ते हुए फिल्म का अंत हमें अपने द्वारा अपनाए गए रास्ते पर चलने से पहले एक बार रुककर सोचने के लिए कहता है। फिल्म का पटकथा लेखन कसा हुआ लगता है।