हर साल भादों माह में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज का त्योहार मनाया जाता है. कजरी तीज को कजली तीज, बड़ी तीज, बूढ़ी तीज या सतूरी तीज नाम से भी जाना जाता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और कन्याएं मनाचाहा वर के लिए व्रत रखती हैं.
कजरी का अर्थ काले रंग से है. इस दौरान आसमान में काली घटा छाई रहती है इसलिए शास्त्रों में इस शुभ तिथि को कजरी तीज का नाम दिया गया है. इस दिन महिलाएं सोलह शृंगार कर गौरी-शंकर की पूजा करती हैं. इस दिन नीमड़ी माता की पूजा भी बहुत कल्याकणकारी मानी गई है. कजरी तीज का व्रत करवा चौथ की भांति निर्जला व्रत के साथ रखा जाता है और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोल जाता है.
पूजा के लिए क्या है शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के मुताबिक भाद्रपद कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 21 अगस्त 2024 को शाम 05:06 बजे से शुरू हो रही है और इसका समापन 22 अगस्त 2024 को दोपहर 1 बजकर 46 मिनट पर होगा. उदिया तिथि के चलते कजरी तीज का व्रत 22 अगस्त दिन गुरुवार को रखा जाएगा. इस दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 5:50 से सुबह 7:30 के बीच रहेगा. हिंदू पंचांग के मुताबिक कजरी तीज के दिन चंद्रोदय रात 8 बजकर 20 मिनट पर होगा.
पूजा सामग्री
कजरी तीज के लिए पूजा सामग्री के रूप में घी, तेल, कपूर, दीपक, अगरबत्ती, हल्दी, चंदन, श्रीफल, गाय का दूध, गंगाजल, दही, मिश्री, शहद, पंचामृत, कच्चा सूता, पीला वस्त्र, केला के पत्ते, बेलपत्र, शमी के पत्ते, जनेऊ, जटा नारियल, सुपारी, कलश, भांग, धतूरा, दूर्वा घास को होना जरूरी है. मां पार्वती के लिए हरे रंग की साड़ी, चुनरी, बिंदी, चूडियां, कुमकुम, कंघी, बिछुआ, सिंदूर और मेहंदी जैसी सुहाग की चीजें चाहिए होती हैं.
कजरी तीज की पूजा विधि
1. कजरी तीज के दिन ब्रह्म मुहूर्त स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनने चाहिए.
2. फिर मंत्रोचारण के साथ सूर्यदेव को जल अर्पित करें.
3. इसके बाद मंदिर की साफ-सफाई करें.
4. फिर एक चौकी पर मां पार्वती और शिवजी की तस्वीर या मूर्ति रख पूजा करें.
5. इसके बाद तालाब में कच्चा दूध और जल डालें और किनारे एक दीया जलाकर रखें.
कजरी तीज को लेकर क्या है मान्यता
पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए देवी पार्वती ने कठोर तपस्या की थी. मां पार्वती ने 108 सालों तक भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तपस्या किया था. देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया. इस तपस्या और प्रेम की कहानी को याद करते हुए कजरी तीज के दिन महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं.
इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और कन्याएं मनाचाहा वर के लिए व्रत रखती हैं. कजरी तीज के दिन महिलाएं कजरी गीत भी गाती हैं, जिनमें प्रकृति के सौंदर्य, प्रेम और रिश्तों का वर्णन होता है. कजरी तीज व्रत के दिन महिलाएं जौ, चने, चावल और गेहूं के सत्तू बनाती हैं. उसमें घी और मेवा मिलाकर कई प्रकार के भोजन बनाती हैं. इसके बाद चंद्रमा की पूजा करके उपवास खोलती हैं.
नीमड़ी माता की कैसे करें पूजा
कजरी तीज के दिन नीमड़ी माता की भी आराधना की जाती है. इस दिन पूजन से पहले मिट्टी व गोबर से दीवार के सहारे एक तालाब जैसी आकृति बनाएं. उसके पास नीम की टहनी को रोपें. इसके बाद तालाब में कच्चा दूध और जल डालें. किनारे पर एक दीया जलाकर रखें. इसके बाद नीमड़ी माता को जल की छींटे दें. उन्हें रोली, अक्षत व मोली चढ़ाएं. इसके बाद पूजा के कलश पर रोली से टीका लगाएं और कलावा बांधें.
फिर नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर अंगुली से मेहंदी, रोली और काजल की 13-13 बिंदिया लगाएं. इसके बाद नीमड़ी माता को इच्छानुसार किसी एक फल के साथ दक्षिणा चढ़ाएं. फिर नीमड़ी माता से पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन की कामना करें. इसके बाद किसी तालाब के किनारे दीपक के उजाले में नींबू, नीम की डाली, ककड़ी, नाक की नथ और साड़ी का पल्लू देखें. आखिर में चंद्रमा को अर्घ्य दें और सुख-संपन्नता के लिए प्रार्थना करें. चंद्रोदय के समय कजरी तीज पर शाम के समय नीमड़ी माता की पूजा के बाद चांद को अर्घ्य देने की परंपरा है.