शनिवार को हलषष्ठी व्रत मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के मुताबिक, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को प्रभु श्री कृष्ण के बड़े भाई श्री बलरामजी का जन्म हुआ था। इसी की वजह से इस व्रत का नाम हलषष्ठी पड़ा। इस व्रत को ललही छठ, हलछठ, हरछठ, और रांधन छठ जैसे नामों से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, यह व्रत संतान प्राप्ति और संतान की लंबी आयु के लिए किया जाता है। इस व्रत में हल की भी पूजा की जाती है।
हलषष्ठी व्रत का महत्व
इस व्रत को विधि-विधान से करने से संतान के जीवन में चल रहे सभी दुख-दर्द समाप्त होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान को लंबी आयु प्राप्त होती है।
हलषष्ठी व्रत नियम
हरछठ के दिन व्रति महिलाएं महुआ की दातुन और महुआ का सेवन करती हैं।
हलषष्ठी व्रत पूजा मुहूर्त
षष्ठी तिथि 24 अगस्त 2024 को सुबह 07 बजकर 51 मिनट से प्रारंभ होगी और 25 अगस्त 2024 को सुबह 05 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगी। हरछठ व्रत पूजन का समय 07:31 ए एम से 09:08 ए एम तक रहेगा।
हरछठ व्रत में क्या खाना चाहिए
हरछठ व्रत में गाय के दूध से बनी चीजें या हल चले खेत से उगाई गई चीजें नहीं खाई जाती हैं। इस व्रत में तालाब में पैदा हुई चीजें ही खाई जाती हैं।
हलषष्ठी व्रत में क्या नहीं करना चाहिए
हरछठ व्रत में हल चले भूमि पर नहीं चलना चाहिए। तामसिक भोजन जैसे प्याज और लहसुन का सेवन नहीं करना चाहिए। इस व्रत में गाय के दूध, दही, या घी का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए.
हलषष्ठी पूजन विधि
इस दिन महिलाएं महुआ के पेड़ की टहनी से दातून कर स्नान करती हैं और व्रत रखती हैं। व्रती महिलाएं इस दिन अनाज का सेवन नहीं करतीं। पूजा के लिए एक चौकी या पाटे पर गौरी-गणेश और कलश स्थापित करते हैं, और हल षष्ठी देवी की प्रतिमा या मूर्ति का पूजन किया जाता है। इस पूजन में उपयोग होने वाली सामग्री में बिना हल चले भूमि पर उगा धान, महुआ के पत्ते, धान की लाई, भैंस का दूध, दही और घी शामिल होते हैं। साथ ही बच्चों के खिलौने जैसे भौरा और बाटी आदि भी पूजन में रखे जाते हैं।