सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोन मोरेटोरियम को और नहीं बढ़ाया जा सकता और न ही इस दौरान ब्याज को पूरी तरह से माफ किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से बैंकों को राहत मिली है. दूसरी तरफ, पूरी तरह से ब्याज माफी की मांग कर रहे रियल एस्टेट जैसे कई सेक्टर की कंपनियों को झटका लगा है.
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अपने एक आदेश में करोड़ों लोगों को इस बात से राहत दी थी कि लोन मोरेटोरियम के दौरान उनके कर्ज के ब्याज के ऊपर ब्याज यानी चक्रवृद्धि ब्याज न लगाई जाए, लेकिन अब कोर्ट ने कहा कि इस दौरान लगे ब्याज को पूरी तरह से माफ नहीं किया जा सकता.
कोर्ट ने कहा कि वह आर्थिक नीतियों में दखल नहीं दे सकता. जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की बेंच ने यह फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि वह इकोनॉमिक पॉलिसी मामलों में दखल नहीं दे सकता. वह यह तय नहीं करेगा कि कोई पॉलिसी सही है या नहीं. कोर्ट केवल यह तय कर सकता है कि कोई पॉलिसी कानून सम्मत है या नहीं.
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के पक्ष को समझते हुए कहा कि कोरोना महामारी से सिर्फ कंपनियों को ही नहीं, सरकार को भी नुकसान हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह सरकार और रिजर्व बैंक पर और दबाव नहीं बना सकता.
जस्टिस शाह ने कहा, ‘हमने राहत पर स्वतंत्र तौर से विचार किया है. लेकिन पूरी तरह से ब्याज को माफ करना संभव नहीं है, क्योंकि बैंकों को भी तो आखिर खाताधारकों और पेंशनर्स को ब्याज देना होता है.’
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दिया है. इस हलफनामे में साफ तौर पर कहा गया है कि सरकार ने विभिन्न सेक्टर्स को पर्याप्त राहत पैकेज दिया है. मौजूदा महामारी के बीच अब यह संभव नहीं है कि इन सेक्टर्स को और ज्यादा राहत दी जाए.
केंद्र ने ये भी कहा कि जनहित याचिका के माध्यम से क्षेत्र विशेष के लिए राहत की मांग नहीं की जा सकती. केंद्र सरकार के हलफनामे के मुताबिक 2 करोड़ तक के लोन के लिए ब्याज पर ब्याज (चक्रवृद्धि ब्याज) माफ करने के अलावा कोई और राहत राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और बैंकिंग क्षेत्र के लिए हानिकारक है.