4 जुलाई से 31 अक्टूबर तक बरतें सावधानी, मिलेगा अश्वमेध यज्ञ का फल

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4 जुलाई से चातुर्मास (देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक का समय) का आरंभ हो रहा है। चार महीने तक मांगलिग कार्यों पर लगेगा विराम और धार्मिक कार्यों की ओर प्रत्येक सनातन धर्म का अनुसरण करने वाले का बढ़ेगा ध्यान। चार माह के अंतर्गत सावन, भादो, अश्विन व कार्तिक का महीना आएगा। 31 अक्टूबर तक बरतें सावधानी।

 चार्तुमास में क्या न करें?
श्रावण यानि सावन के महीने में साग एवं हरि सब्जियां, भादों में दही, आश्विन में दूध और कार्तिक में दालें खाना वर्जित है।

 किसी की निंदा चुगली न करें तथा न ही किसी से धोखे से उसका कुछ हथियाना चाहिए।

चातुर्मास में शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए।

कांसे के बर्तन में कभी भोजन नहीं करना चाहिए।

जो अपनी इन्द्रियों का दमन करता है वह अश्वमेध यज्ञ के फल को प्राप्त करता है।

शय्या पर न सोकर धरती पर सोना चाहिए।

मांस, मदिरा, मधु, लहसुन, प्याज और रसदार वस्तुओं का त्याग करना चाहिए।

ब्रह्मचार्य का पालन करें।

शास्त्रानुसार जो भक्त कमल पुष्पों से भगवान विष्णु का पूजन करते हैं उन्हें तीनों लोकों और तीनों सनातन देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश का पूजन एक साथ ही करने का फल प्राप्त होता है।  इस व्रत में ब्राह्मणों को दान आदि देने का अत्याधिक महत्व है। स्वर्ण अथवा पीले रंग की वस्तुओं का दान करने से अत्याधिक पुण्यफल प्राप्त होता है। जब तक भगवान विष्णु शयन करते हैं तब तक के चार महीनों में सभी को धर्म के नियमों का पूरी तरह से आचरण करना चाहिए। ऐसा करने से जीव को परमगति प्राप्त होती है। रात्रि में भगवान विष्णु जी की महिमा का गुणगान करते हुए जागरण करना, मंदिर में दीपदान करना अति उत्तम कर्म है।

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