भूलकर भी न करें ये गलतियां, पितर हो सकते हैं नाराज

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सनातन धर्म में पितृपक्ष का समय पितरों के तर्पण और श्राद्ध के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस समय लोग अपने पितरों को याद करके उनसे आशीर्वाद लेते हैं। पितृपक्ष भादप्रद मास की पूर्णिमा तिथि से आरंभ होकर अश्विन मास की अमावस्या तक रहता है। पितृपक्ष में 16 दिन होते हैं। इसबार पितृपक्ष का समय 2 सितंबर से आरंभ होकर 17 सितंबर तक रहेगा। इस दौरान कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिससे आपके पितर आपसे नाराज हो जाएं। जानते हैं कि पितृपक्ष में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  • पितृपक्ष को पितरों का समय माना गया है, यह समय पितरों को याद करने का होता है, इसलिए इस समय कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। पितृपक्ष में नए कपड़े या कोई भी नई वस्तु नहीं खरीदनी चाहिए।
  • पितृपक्ष में पुरुषों को बाल और दाढ़ी नहीं कटवानी चाहिए। शास्त्रों में इस बात की मनाही है। क्योंकि इन दिनों को शोक के दिन माना जाता है।
  • माना जाता है कि पितृपक्ष में सभी पितर धरती पर होते हैं, इसलिए वे किसी भी रुप में आ सकते हैं। पितृपक्ष में भूलकर भी किसी पशु-पक्षी को नहीं सताना चाहिए। इस समय में अगर आपके द्वार पर कोई आता है, तो उसे खाली हाथ वापस न लौटाएं।
  • जिस दिन आपको श्राद्ध कर्म करना हो उस दिन शरीर पर तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए, इस दिन इत्र (सैंट) नहीं लगाना चाहिए। घर पर सातविक भोजन बनाकर तर्पण करना चाहिए। श्राद्धकर्म के दिन पान न खाएं और पितृपक्ष में दूसरों के घर का भोजन न करें।
  • पितरों का श्राद्ध करते समय भूलकर भी लोहे के बर्तनों का प्रयोग न करें। इसके स्थान पर अन्य धातु के बने बर्तनों का उपयोग कर सकते हैं। श्राद्ध करने के लिए पत्तल का प्रयोग कर सकते हैं। कहते हैं कि इससे अशुभ प्रभाव पड़ता है। अगर आप पिंडदान कर रहे है तो ब्राह्मण को लोहे के आसन पर न बिठाएं।
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