नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली की जोड़ी से देश बुधवार सुबह बहुत बड़ी उम्मीदें लगाये बैठा था। नोटबंदी के बाद पहला बजट और विपक्ष के तमाम विरोधों के बावजूद एक माह पहले पेश होने वाले बजट में कुछ ऐसे बड़े प्रावधानों के कयास लगाये जा रहे थे, जो पहले किसी वित्त मंत्री ने नहीं किये। वैसे भी पांच राज्यों में विधान सभा चुनावों के मौके पर राजनीतिक फायदे के लिए भी कुछ बड़े कदमों की उम्मीद थी। लेकिन संसद में हंगामे और बजट पेश होगा या नहीं की अनिश्चितता समाप्त होने के बाद अरूण जेटली ने बजट पेश कर दिया और वह अब सबके सामने है। असल में नोटबंदी के झटके के बाद कमजोर विकास दर के चक्र में फंसी देश की इकोनॉमी के लिए असाधारण समय है, वहीं जेटली का बजट बहुत ही साधारण रहा है और सही मायने में इसमें कर प्रावधानों से लेकर निवेश और किसान व ग्रामीण क्षेत्र तक ऐसा कुछ नहीं किया गया है जिसमें नयापन हो और न ही कोई बोल्ड रिफार्म इस बजट में है। ऐसे में जो बड़ी उम्मीदें थी वह अधूरी ही रह गई।
21.47लाख करोड़ टैक्स से जुटाने का टारगेट
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने बुधवार को आगामी वित्त वर्ष 2017-18 के लिए 21.47 लाख करोड़ रुपए का बजट पेश कर दिया। लेकिन इस बजट को लेकर जिस तरह के कयास लगाये जा रहे थे यह बजट उतनी बड़ी आर्थिक घटना नहीं बन सका। पहली बार एक फरवरी को पेश और रेलवे बजट की समाप्ति के साथ ही इस बजट में प्लान और नॉन प्लान एक्सपेंडीचर के अंतर को समाप्त करने समेत यह बजट कई तरह से अलग है, लेकिन नोटबंदी के बाद पेश होने वाले इस बजट में ऐसे बड़े ऐलान, आर्थिक सुधार या यूनिक कदम नहीं दिखे, जिनकी उम्मीद की जा रही थी। इनकम टैक्स में बड़े बदलावों और छूट की उम्मीद पाले मध्य वर्ग और कारपोरेट को इस बजट निराशा ही हाथ लगी। सबसे बड़े कदम के रूप में अरुण जेटली ने पांच लाख रुपये तक की इनकम पर टैक्स की दर को 10 फीसदी से घटाकर पांच फीसदी कर दिया। इसके अलावा टैक्स प्रक्रिया में मामूली टिंकरिंग ही की गई है। जेटली के इन बजट प्रावधानों से सरकार को 22700 करोड़ रुपए का रेवेन्यू नुकसान होगा, जबकि कर प्रस्तावों में किये गये बदलावों से 2700 करोड़ रुपए काअतिरिक्त रेवेन्यू मिलेगा। कुल मिलाकर 20 हजार करोड़ रुपये के रेवेन्यू लॉस की बात वित्त मंत्री ने बजट में की है। इसी तरह उन्होंने डायरेक्ट टैक्स में 20 हजार करोड़ रुपए का नुकसान की बात की है जो इनडायरेक्ट टैक्स के नये प्रावधानों के जरिये 75 हजार करोड़ रुपए का नया बोझ लोगों पर डाला है।
पुरानी बातों पर ज्यादा फोकस
अरूण जेटली ने बजट को 10 मुद्दों पर केंद्रित रखने की बात कही। इसमें किसान की आय को दोगुना करना। ग्रमीण आबादी को रोजगार और मूल ढांचागत सुविधा। युवाओं को कौश और रोजगार। गरीबों को आवास और सामाजिक सुरक्षा, ढांचागत क्षेत्र। फाइनेंशियल सेक्टर, डिजिटल इकोनॉमी, सार्वजनिक सेवाएं, बेहतर फिस्कल मैनेजमेंट और कर प्रशासन। लेकिन इन सभी दस मुदों पर वित्त मंत्री ने बजट में ऐसा कुछ नहीं किया जिसमें नयापन हो या इन क्षेत्रों के लिए कोई क्रांतिकारी कदम हो। या तो पहले से जारी योजनाओं और प्रोजेक्ट पर बात की या फिर उनमें थोड़ा रद्दोबदल किया। ऐसे में लगा रहा है कि वह यथास्थिति को केंद्र में रखकर बजट तैयार कर रहे थे।
नहीं दिखे बिगबैंग रिफॉर्म
असल में इस बात की उम्मीद थी कि वित्त मंत्री नोटबंदी से इकोनॉमी को लगे झटके से हुए नुकसान की भरपाई के लिए बिग बैंग रिफार्म इस बजट में घोषित करेंगे। लेकिन जिस तरह से इनकम टैक्स में मामूली बदलाव किये गये हैं और इनडायरेक्ट टैक्स में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया है उससे लगता है कि कोई झटका नहीं लगना ही इस बजट की अच्छी खबर है। वित्त मंत्री ने 50 लाख रुपए से एक करोड़ रुपए की आय पर 10 फीसदी सेस लगा दिया जो पहले एक करोड़ रुपए से ऊपर की आय पर लगता था, वहीं एक करोड़ रुपए से ऊपर की आय पर अब सेस को बढ़ाकर 15 फीसदी कर दिया है। इसके अलावा उन्होंने कर छूट निवेश सीमा में कोई बदलाव नहीं किया है और न की कर स्लैब को छेड़ा है। हो सकता है कि पांच राज्यों में हो रहे विधान सभा चुनावों में राजनीतिक फायदे नुकसान से आकलन के आधार पर उन्होंने कोई बड़े टैक्स बदलाव नहीं किये।
रियल एस्टेट को बूस्ट देने की कवायद
वहीं इस बजट में जेटली ने सोशल वेलफेयर के लिए भी कोई बड़ी स्कीम घोषित नहीं की। सोशल वेलफेयर की स्कीम्स पर बजट के आउटले का केवल 1.48 फीसदी की प्रावधान किया गया है। हालांकि सबको घर देने के वादे को दोहराया और अफोर्डेबल हाउसिंग को इंफ्रास्ट्रक्चर का दर्जा देने के साथ ही रियल एस्टेट सेक्टर के लिए कुछ कदम उठाये हैं जो इस सेक्टर को कुछ बूस्ट दे सकते हैं।