मालदीव में जारी राजनीतिक गतिरोध में रविवार को सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई और सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए. सुप्रीम कोर्ट ने मुश्किलों में घिरे राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को नौ राजनीतिक कैदियों को रिहा करने और असंतुष्ट 12 सांसदों को बहाल करने का आदेश दिया. राष्ट्रपति ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया है.
सरकार ने इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने का विरोध किया था, सरकार ने इस फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की थी. लेकिन अदालत ने कहा है कि पहले सरकार पुराने फैसले का पालन कर, फिर याचिका स्वीकार की जाएगी. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अबदुल्ला सईद ने कहा कि असंतुष्टों को जरूर रिहा किया जाना चाहिए, क्योंकि उनके खिलाफ मुकदमा राजनीति और दुर्भावना से प्रेरित था. मालदीव की राजधानी माले में हजारों लोग सरकार के विरोध में सड़कों पर जमे हुए हैं.
चीफ जस्टिस अबदुल्ला सईद ने दावा किया है कि उन्हें और साथी जजों अली हमीद और न्यायिक अधिकारी हसन हसीद को धमकी भरे फोन आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि वे रात में भी अदालत में ही रुकेंगे. सुरक्षा बलों और पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट को घेरा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को सरकार की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया.
कोर्ट ने कहा, ‘पुराने आदेश का पालन होने और कैदियों को रिहा करने के बाद सरकार फिर से उनके खिलाफ मुकदमा चला सकती है.’ आपको बता दें कि 12 सांसदों को बहाल करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से यामीन की पार्टी अल्पमत में आ जाएगी और उनपर महाभियोग का खतरा भी मंडरा सकता है. ये सांसद सत्ता पक्ष से अलग होकर विपक्ष में शामिल हो गए थे. इस बीच, पुलिस ने रविवार को दो विपक्षी सांसदों को गिरफ्तार कर लिया जो आज ही स्वदेश लौटे थे. इस द्वीपीय देश में राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है.
समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, मुख्य विपक्षी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) ने कहा कि इसके सांसदों ने संसद को निलंबित करने के आदेश के विरोध में एक बैठक करने की कोशिश की, लेकिन सशस्त्र बलों ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया.
राष्ट्रीय संसद ‘पीपल्स मजलिस’ के अंदर पिछले साल मार्च से सशस्त्र बल तैनात हैं, जब यामीन ने उन्हें अंसतुष्ट सांसदों को निकालने का आदेश दिया था. असंतुष्टों के खिलाफ राष्ट्रपति की कार्रवाई से इस छोटे से पर्यटक द्वीपसमूह की छवि को खासा नुकसान पहुंचा है. संयुक्त राष्ट्र और कई देशों ने नए-नवेले लोकतंत्र में कानून के शासन को बहाल करने की अपील की है.
गुरुवार को देश की सर्वोच्च अदालत ने अधिकारियों को नौ राजनीतिक असंतुष्टों की रिहाई और 12 सांसदों की फिर से बहाली का आदेश दिया था. इन सांसदों को यामीन की पार्टी से अलग होने के बाद बर्खास्त कर दिया गया था. अदालत ने कहा था कि ये मामले राजनीति से प्रेरित थे.
यामीन सरकार ने अब तक संसद को भंग करने और अदालती आदेश को मानने की अंतरराष्ट्रीय अपील को नहीं माना है. रविवार को राष्ट्रीय टेलीविजन पर दिए गए अपने संदेश में अटॉर्नी जनरल मोहम्मद अनिल ने कहा कि सरकार इसे नहीं मानती.
अनिल ने कहा, ‘राष्ट्रपति को गिरफ्तार करने का सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला असंवैधानिक और अवैध होगा. इसलिए मैंने पुलिस और सेना से कहा है कि किसी भी असंवैधानिक आदेश का अनुपालन न करें.’ यामीन ने अदालत के फैसले के बाद दो पुलिस प्रमुखों को भी बर्खास्त कर दिया. श्रीलंका और मालदीव के लिए अमेरिकी राजदूत अतुल केशप ने अदालत के आदेश का पालन करने से इनकार करने पर यामीन सरकार की आलोचना की है. पूर्व राष्ट्रपति और मौजूदा विपक्षी नेता मोहम्मद नशीद ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने के सरकार के फैसले को बगावत’ करार दिया है.