जैसे कि हम आपको अपने आर्टिकल्स के जरिए बता चुके हैं कि मुस्लिम धर्म का पाक महीना रमज़ान शुरू हो चुका है। इस पूरे महीने में मुसलमान रोज़ा रखते हैं और इबादत करते हैं। कहा जाता है रमज़ान का ये पाक महीना 29 से 30 दिन बिना खाए पीए रोज़े रखकर बिताया जाता है। इस महीने से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार स पूरे महीने में अल्लाह अपने बंदों के लिए जहन्नुम के दरवाज़े बंद करके जन्न्त के दरवाज़े खोल देते हैं और उनके सभी पाप माफ़ कर देते हैं। ये सब बातें तो सभी जानते ही हैं, आज आपको इस्लाम धर्म से जुड़ी एक अन्य बात बताने जा रहे हैं जिसके बारे में सुना तो शायद हर किसी ने होगा लेकिन उससे जुड़ी मान्यता से हर कोई वाकिफ़ नहीं होगा।
आप में से बहुत लोग ने सुना होगा कि मुस्लिम धर्म में दरगाह पर चादर चढ़ाने की मान्यता है। आज हम आपको इसी संदर्भ के बारे में बताने दा रहे हैं कि अजमेर शरीफ़ की दरगाह पर चादर क्यों चढ़ाया जाता है और इस्लाम में इसकी क्या अहमियत है।
राजस्थान के अजमेर शरीफ़ की दरगाह बहुत सुंदर और पाक जगह है। इस दरगाह में हजरत मोइन्नुद्दीन चिस्ती की मज़ार है। कहा जाता अजमेर शरीफ़ की ये दरगाह भारत के प्रसिद्ध स्थानों में से एक है, जहां न केवल मुस्लिम बल्कि दुनियाभर से हर धर्म के लोग यहां चादर चढ़ाने आते हैं। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार रजा माह की पहली से छठवीं तारीख तक यहां उर्स नामक त्योहार मनाया जाता है। यहां आम लोगों के साथ-साथ देश-विदेश के बड़े से बड़े नेता से लेकर फिल्म जगत की कई बड़ी हस्तियां तक चादर चढ़ाने पहुंचती हैं।
कहा जाता है कि हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में आने वाले पहले व्यक्ति थे। इन्होंने 1332 ई. में यहां की यात्रा की।
दरगाह के अंदर एक स्मारक है, जिसे जलाहारा कहा जाता है। कहा जाता है यह हजरत मोइनुद्दीन चिश्ती के समय से यहां पानी का मुख्य स्रोत था। आज भी जलाहारा के पानी का इस्तेमाल दरगाह के सभी प्रमुख कामों में किया जाता है। यह भी मान्यता है कि ख्वाजा साहब ने लोगों के बीच रहकर उनके दुख-दर्द बांटे और उन्हें खुदा के दर का रास्ता दिखाया। कहते हैं जब ख्वाजा साहब मक्का-मदीना गए तब उन्हें सपने में अल्लाह की तरफ़ से हुकूम हुआ कि वो अजमेर जाएं और वहां की दरगाह पर फूलों की चादर चढ़ाएं। मान्यता है कि तब से लेकर आजतक अजमेर शरीफ़ में चादर चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है।
इसके अलावा इस पाक और चमत्कारिक जगह पर एक ऐसा पत्थर है जो बिना किसी सहारे के जमीन से 2 इंच ऊपर उठा हुआ है। यह पत्थर यहां वाले लोगों के लिए किसी अजूबे से कम नहीं हैं। देश-दुनिया के कई वैज्ञानिक भी इस पत्थर पर रिसर्च करने आ चुके हैं, लेकिन अब तक कोई भी इसके रहस्य से पर्दा नहीं उठा सका है।