शीतला सप्तमी-अष्टमी : कैसे की जाती है बसौड़ा की पूजा?

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शीतला अष्टमी को बसौड़ा पूजा भी कहा जाता है. मुख्य रूप से चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है. ये होली से ठीक आठ दिनों बाद मनाई जाती है. हिंदू व्रतों में ये केवल एक ही ऐसा व्रत हैं जिसमें बासी खाना खाया जाता है. इसलिए इसे बसौड़ा भी कहते हैं जिसका मतलब होता है बासी भोजन.

क्या है शीतला अष्टमी का महत्व
शीतला अष्टमी से जुड़ी कई मान्यताएं समाज में प्रचलित हैं. महिलाएं अपने बच्चों की सलामती, उन्हें हर प्रकार के रोगों से दूर रखने के लिए और घर में सुख समृद्धि के लिए शीतला माता की पूजा करती हैं. मान्यता है कि जिस घर में शुद्ध मन से शीतला माता की पूजा होती है वहां हर प्रकार से सुख समृद्धि बनी रहती है. बताया जाता है कि जिस घर में चेचक से कोई बीमार हो, उसे ये पूजा नहीं करनी चाहिए.

क्या है पूजा विधि?
शीतला माता की पूजा के दिन यानी शीतला अष्टमी को चूल्हा नहीं जलाने की परंपरा है. शीतला अष्टमी से एक दिन पहले ही खाना बनाकर रख लिया जाता है. इसके बाद सुबह जल्दी उठकर शीतल माता की पूजा करने के बाद बसौड़े के तौर पर मीठे चावल का प्रसाद चढ़ाया जाता है. कई लोग इस दिन शीतली माता के मंदिर जाकर हल्दी और बाजरे से पूजा भी करते हैं. पूजा के बाद बसौड़ा व्रत कथा कही जाती है. पूजा के बाद परिवार के सभी लोगों को प्रसाद देकर एक दिन पहले बनाया गया बासी भोजन खाया जाता है.

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