फ्रांस में रविवार को हुए पहले चरण के राष्ट्रपति चुनाव में करीब 69.4 फीसद वोट पड़े, जबकि वर्ष 2012 में राष्ट्रपति चुनाव के लिए 70.6 फीसद वोटिंग हुई थी। आज हुए चुनाव के बाद इमैनुअल मैकरॉन और ली पेन ने इस दौड़ के दूसरे चरण में प्रवेश पा लिया है। मध्यमार्गी इमैनुअल मैक्रोन ने फ्रांस के राष्ट्रपति पद के लिए अपनी दावेदारी और मजबूत कर ली है।
ली पेन और मैक्रोन के बीच आखिरी दौर तक चलने वाली कांटे की टक्कर में मैक्रोन ने बाजी मारी। पूर्व वित्त मंत्री और पिछले साल अपनी पार्टी बनाने वाले मैक्रोन को Ifop ने 23.7 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान लगाया वहीं, नैशनल फ्रंट की लू पेन को Ifop के अनुमान में 21.7 प्रतिशत वोट मिले।
इससे पहले, फ्रांस के 66 हजार 546 मतदान केंद्रों पर भारी सुरक्षा बंदोबस्त के बीच वोट डाले गए। नेशनल फ्रंट की प्रमुख ली पेन ने हेनिन ब्यूमांट शहर में वोट डाला। जबकि युवाओं में लोकप्रिय मैकरॉन ने नारमेंडी रिसॉर्ट में पत्नी ली टुकेट के साथ मतदान किया। राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने तुले इलाके में वोट डाला। ओलांद इस बार राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्याशी की दौड़ से बाहर हैं।
48 वर्षीय ली पेन जीतीं तो फ्रांस को पहली महिला राष्ट्रपति मिलेगी। ली पेन आतंकी हमलों को लेकर पैदा हुए असुरक्षा की भावना को उभारने की कोशिश कर रही हैं। बेरोजगारी, शरणार्थियों को लेकर यूरोपीय संघ के खिलाफ नाराजगी भी उनके पक्ष में जा सकती है।
39 साल के मैकरॉन जीते तो देश के सबसे युवा राष्ट्रपति होंगे। पूर्व बैंकर मैकरॉन की गैर राजनीतिक छवि जनता को भा रही है। उन्होंने एक साल पहले एन मार्च नाम से आंदोलन शुरू किया था। ली पेन से उलट वह यूरोपीय संघ में फ्रांस के बने रहने के समर्थक हैं। मैकरॉन कह चुके हैं कि वह दक्षिणपंथ और वामपंथ के बीच का रास्ता अपनाएंगे।
पहले राउंड के नतीजों के बाद फ्रांस पर 60 सालों से भी ज्यादा समय तक राज्य करने वाले राजनीतिक गुटों को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। अपनी विजयी बयान में मैक्रोन ने अपने समर्थकों से आगे बढ़ने का संदेश देते हुए कहा, ‘एक साल में हमने फ्रांस की राजनीति की तस्वीर बदल दी है।
अंतिम नतीजे आने से पहले ही प्रतिदंद्वी कंजरवेटिव और सोशलिस्ट उम्मीदवारों ने हार स्वीकार करते हुए अपने समर्थकों को मैक्रोन को सपोर्ट करने को कहा। दोनों उम्मीदवारों ने कहा कि दूसरे राउंड में लू पेन की जीत रोकना जरूरी है क्योंकि उनकी ऐंटी-इमिग्रेशन और ऐंटी-यूरोप नीतियां फ्रांस के लिए घातक हैं।