अपनी किस्मत अपने हाथ

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एक बहुत बड़ा राजा था। उसके पास बेसुमार धन दौलत थी। राजा अपने राज्य का बहुत ध्यान रखता था और दान पुण्य भी बहुत करता था। लेकिन धीरे धीरे राजा को अपनी इस बात पर घमंड होने लगा। वो सोचने लगा कि सारी प्रजा मेरी दया से पल रही है और मैं ही सबका भाग्य बनाता हूँ। उसे हर समय अपनी ही तारीफ सुनने की आदत पड़ गई। राजा के सभी दरबारी अपने स्वार्थ के लिए और राजा के डर से हमेशा राजा की तारीफ करते रहते थे।

राजा की चार बेटियां थीं। राजा अपनी बेटियों से कहता था कि वो उनकी शादी बड़े धूमधाम से बड़े बड़े राजघरानों में करेगा और उन्हें खूब धन दौलत देगा। राजकुमारियां पढ़ी लिखी और बुद्धिमान थीं। उन्हें अपने पिता का घमंड अच्छा नहीं लगता था। आपस में बातें करते हुए वो चारों कभी कभी इस बात पर भी चर्चा करती थीं कि पिताजी को बहुत घमंड हो गया है, वो सोचते हैं कि वो ही सबका भाग्य बनाते हैं।

एक बार चारों राजकुमारियां इस बात पर चर्चा कर रही थीं कि पिताजी का घमंड बढ़ता ही जा रहा है, किसी तरह पिताजी को समझाना होगा। तभी पीछे से राजा आ गया और उसने ये बातें सुन लीं। राजा को लगा कि ये चारों उसकी बुराई कर रही हैं। राजा एकदम से क्रोधित हो उठा। उसने एक एक करके चारों को बुलाया और पूछा कि बताओ तुम्हारा भाग्य किसने बनाया है? राजा के मुंह पर उसकी बुराई करने की किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी। तीनों बड़ी राजकुमारियों ने कहा कि पिताजी हमारा भाग्य आपने बनाया है, हम आपके भाग्य का ही खाते हैं। लेकिन छोटी राजकुमारी हमेशा सत्य का साथ देती थी, उसने साहस दिखाते हुए कहा – “पिताजी क्षमा कीजिये, आप किसी का भाग्य बना या बिगाड़ नही सकते। लोगों का भाग्य उनके अपने कर्म बनाते हैं और सब अपने अपने भाग्य का खाते हैं।” यह बात सुनकर राजा को बहुत गुस्सा आया और वो छोटी राजकुमारी से नफ़रत करने लगा। उसने तीनों बड़ी राजकुमारियों की शादी धूमधाम से बड़े राजघरानों में की लेकिन छोटी राजकुमारी की शादी एक बहुत गरीब लकड़हारे से करवा दी। राजा ने लकड़हारे को देखा तक नहीं और बिना कोई दान दहेज दिये ही छोटी राजकुमारी को विदा कर दिया। राजकुमारी चुपचाप अपने गरीब लकड़हारे पति के साथ चली गई।

लकड़हारा अपने गुजारे के लिए जंगल से लकड़ियां काट कर बेचता था जिससे उसे बहुत थोड़े से पैसे मिलते थे। राजकुमारी ने हार नहीं मानी। एक दिन उसने सोचा की उसे भी अपने पति के साथ लकड़ियां काटने जंगल में जाना चाहिए। उसने यह बात अपने पति को बताई। अगले दिन लकड़हारा उसे भी अपने साथ लकड़ियां काटने के लिए ले गया। जंगल में जाकर राजा की बेटी ने देखा कि वहाँ बहुत सारे चन्दन के पेड़ खड़े हैं। लकड़हारा जिस जंगल से लकड़ियां काट कर लाता था वहाँ चन्दन के हज़ारों हजार पेड़ थे लेकिन उस गरीब लकड़हारे को चन्दन की लकड़ी के बारे में कुछ पता ही नहीं था। राजकुमारी ने उसे बताया कि यह तो बहुत कीमती लकड़ी है और इसे बेचकर हम मालामाल हो सकते हैं। अब दोनों चन्दन की लकड़ियां काट कर लाते और लकड़हारा उन्हें पास के शहर में जाकर बेच आता। धीरे धीरे वो लकड़हारा चन्दन की लकड़ी का बड़ा व्यापारी बन गया और खूब धनवान हो गया। उसने अपने रहने के लिए एक बहुत बड़ी और आलीशान हवेली भी बनवा ली। राजकुमारी और लकड़हारा अपना जीवन खूब हशी खुशी और सम्पन्नता से बिताने लगे।

कुछ सालों के बाद राजा ने अपने राज्य में एक बहुत भव्य महल बनवाने का फैसला लिया। इसके लिए राजा को बहुत सारी चन्दन की लकड़ी की जरूरत पड़ी। राजा लकड़ी खरीदने के लिए उस लकड़हारे के पास आया जो कि अब चन्दन का बहुत बड़ा व्यापारी बन चुका था। राजकुमारी ने अपने पिता को पहचान लिया और भोजन का इंतज़ाम कराया। भोजन में राजकुमारी ने सारे पकवान अपने पिताजी की पसंद के बनाए। राजा यह देखकर बड़ा हैरान हुआ की भोजन में सारे ही पकवान उसकी पसंद के थे। इतने में राजकुमारी खुद राजा के सामने आई और हाथ जोड़कर खड़ी हो गई। अब तो राजा की हैरानी का ठिकाना नहीं रहा। उसने राजकुमारी को गले से लगा लिया। राजा को जब सारी बात पता लगी तो उसे अपने आप पर बहुत शर्म आई। उसने राजकुमारी से कहा की बेटी मुझे क्षमा कर देना, मैंने तुम्हारे साथ बहुत अन्याय किया, तुमने अपनी मेहनत और बुद्धिमानी से अपना भाग्य खुद बनाया है और मेरे घमंड को चूर चूर कर दिया है।

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