आंखों पर प्रदूषण का असर: मोतियाबिंद तक हो सकता है

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हर लिहाज से बढ़ते प्रदूषण का हमारी प्रदूषण आंखों पर भी प्रभाव पड़ रहा है. वहीं अल्ट्रा वॉयलेट किरणों की वजह से भी आंखों की तकलीफें बढ़ रही हैं.

कॉर्निया, पलकों, सिलेरिया और यहां तक कि लेंस पर भी पर्यावरण का असर होता है. बढ़ते तापमान और पर्यावरण के चक्र में आते बदलाव के चलते क्षेत्र में हवा खुश्क हो रही है. इस वजह से आंखें में ज्यादा खुश्की आ रही है, जिसके चलते आंखों में आंसू या तो बनते नहीं या फिर बहुत जल्दी सूख जाते हैं.

क्या हैं खतरे
वायु प्रदूषण लंबे समय से सांस प्रणाली की समस्याओं का कारण तो बन ही रहा है लेकिन हाल ही में इसका असर आंखों पर भी नजर आने लगा है.
लकड़ी या कोयले जलते समय इनके कण आंखों में चले जाएं तो संक्रमण हो सकता है. इस वजह से पलकों के अंदर जख्म हो सकते हैं, जिससे पलकें अंदर की ओर मुड़ जाती हैं और कोर्निया से रगड़ खाने लगती हैं. इससे आंखों को और क्षति पहुंचती है और समस्या ज्यादा बढ़ने पर नजर तक जा सकती है.
इस बारे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मानद महासचिव डॉ. के. के. अग्रवाल कहते हैं कि ओजोन की क्षति होने से अल्ट्रावायलेट किरणों का असर बढ़ रहा है, जिससे कोर्टिकल कैटेरेक्ट का खतरा बढ़ जाता है. सूर्य की खतरनाक किरणों के लगातार संपर्क में आने से आंखों के लेंस के प्रोटीन की व्यवस्था बिगड़ सकती है. इससे लेन्ज एपिथीलियम को क्षति पहुंच सकती है, जिससे लेंस धुंधला हो जाता है.

कैसे बचें
वह कहते हैं कि हैट पहनने से यूवी का असर 30 प्रतिशत तक कम हो सकता है. यूवी प्रोटेक्शन वाला साधारण धूप का चश्मा लगाने से 100 प्रतिशत तक सुरक्षा हो सकती है.
पूरे समाज को आंखों को होने वाले गंभीर नुकसान के बारे में जागरुक होना चाहिए. भारतीयों में पहले ही विटामिन-डी की कमी है, इसलिए इन सावधानियों पर गौर करना बेहद जरूरी है.

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