दिल्ली हाईकोर्ट ने निर्भया के दोषियों की याचिका खारिज की

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निर्भया मामला में पटियाला हाउस कोर्ट द्वारा डेथ वारंट पर रोक लगाने से इनकार कर देने के बाद दोषियों की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई हो रही है। इस दौरान दोषियों के वकील एपी सिंह को जज ने फटकार भी लगाई है।

सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने वकील से कहा है कि तीन महीनें में चौथी बार डेथ वारंट जारी हुआ है और इसका कुछ तो महत्व रहने दीजिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि अर्जी में जो कहा गया है वह बोला नहीं जा रहा है। तीन कोर्ट और राष्ट्रपति ने इस मामले में अपना फैसला सुना चुके हैं। आपको कुछ ठोस बात करनी होगी।

निर्भया केस में सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट के जज ने वकील एपी सिंह से कहा कि कानून उसी की मदद करता है, जो समय पर एक्शन लेते हैं।

सुनवाई के दौरान जज ने कहा कि हम उस समय के करीब है जब आपके मुवक्किल भगवान से मुलाकात करेंगे। समय बर्बाद नहीं करें। आपके पास सिर्फ 4-5 घंटे के समय है।

सुनवाई को दौरान जज गुस्से में आ गए। उन्होंने निर्भया के दोषियों के वकील एपी सिंह से कहा है कि कोर्ट का समय खराब नहीं करो, अगर कुछ महत्वपूर्ण बातें बताने के लिए है तो वह बताओ। जज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने तालाक वाली याचिका को फांसी की याचिका को रोकने में बाधा नहीं बनाया जा सकता है।

दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान निर्भया के दोषियों के वकील एपी सिंह ने मंडोला जेल में मुकेश सिंह पर कथित हमले का भी जिक्र किया। इस दौरान उन्होंने इस केस के इकलौते गवाह के खिलाफ हाई कोर्ट में लंबित याचिका का भी जिक्र किया।

निर्भया केस को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान जज ने कहा कि आपको यह समझना हो कि कोर्ट का फैसला हो चुका है। अब हम उस फैसले की इसलिए समीक्षा नहीं कर सकते हैं कि अक्षय ठाकुर की पत्नी ने किसी कोर्ट में तलाक की अर्जी डाल दी है।

जज ने निर्भया को दोषियों के वकील एपी सिंह से कहा कि आप ऐसा नहीं कह सकते हैं कि कोर्ट तक पहूंच नहीं हो पा रही है। आप दिन में तीन कोर्ट हो आए हैं। आप किसी भी देश में जाएं ऐसी सुविधा नहीं मिलेगी। सुनवाई के दौरान एपी सिंह ने कोर्ट में कहा कि इस केस में बहुत सी याचिकाएं लंबित हैं।

इससे पहले निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्याकांड के गुनहगारों के सारे हथकंडे गुरुवार को फेल हो गए। अब यह तय हो गया कि चौथी बार जारी डेथ वारंट के अनुसार ही चारों दोषियों को शुक्रवार सुबह 5.30 बजे फांसी पर लटका दिया जाएगा। गुरुवार को दिल्ली की अदालत से लेकर देश की सर्वोच्च अदालत तक में दोषियों की याचिकाओं पर सुनवाई हुईं और उन्हें खारिज कर दिया गया।

पांच मार्च को एक निचली अदालत ने 32 वर्षीय मुकेश सिंह, 25 वर्षीय पवन गुप्ता, 26 वर्षीय विनय शर्मा और 31 वर्षीय अक्षय कुमार सिंह को 20 मार्च को फांसी देने के लिए मृत्यु वारंट जारी किया था। इसपर तामील की तारीख से एक दिन पहले चारों दोषियों ने इसे टलवाने के लिए विभिन्न अदालतों में पूरा जोर लगा दिया लेकिन कानून के सामने उनके दांवपेच धरे रह गए। दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने तीन दोषियों की फांसी पर रोक लगाने संबंधी याचिकाओं को खारिज कर दिया। चौथे दोषी मुकेश की याचिका पर शीर्ष अदालत ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया।

अक्षय की याचिक सुप्रीम कोर्ट में खारिज
चारों दोषियों में से एक अक्षय सिंह ने राष्ट्रपति द्वारा उसकी दूसरी दया याचिका खारिज करने के फैसले को चुनौती दी थी। अक्षय ने पहली दया याचिका 29 जनवरी को दायर की थी, जिसे राष्ट्रपति ने 31 जनवरी को खारिज कर दिया था। अक्षय ने बुधवार को दूसरी दया याचिका दायर की थी, जिसे राष्ट्रपति ने गुरुवार को खारिज कर दी थी। न्यायमूर्ति आर भानुमति, अशोक भूषण और एएस बोपन्ना की पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि अक्षय की दया याचिका खारिज करने के फैसले की न्यायिक समीक्षा करने का कोई आधार नहीं है।

अक्षय ने अपनी याचिका में उसे एकांत में रखे जाने और यातना दिए जाने जैसे मुद्दों के साथ ही दोषियों की मौत की सजा पर अमल की हिमायत करने वाले केंद्रीय मंत्रियों और दिल्ली सरकार के मंत्रियों के प्रेस इंटरव्यू को आधार बनाया था। अक्षय ने यह दलील भी दी थी कि उसकी दया याचिका खारिज करने के लिए राष्ट्रपति को प्रभावित किया गया। शीर्ष अदालत ने याचिका में दी गईं सारी दलीलों को ठुकराते हुए कहा कि उसे ऐसी कोई वजह नजर नहीं आई, जिससे यह पता चले कि दया याचिका खारिज करते समय राष्ट्रपति ने अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया। पीठ ने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज किए जाने के मामले में न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत सीमित है और न्यायालय को यह देखना होता है कि क्या ऐसे मामले में विवेक का इस्तेमाल किया गया।

न्यायालय ने अक्षय की पत्नी द्वारा तलाक के लिए दायर याचिका कुटुम्ब अदालत में लंबित होने का तर्क भी अस्वीकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि इन याचिकाओं का लंबित होना मौत की सजा के फैसले के अमल पर रोक लगाने का कोई आधार नहीं हो सकता है। याचिका में दिल्ली के उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के समक्ष उसकी सजा में छूट के लिए लंबित मामले का भी जिक्र किया गया था, लेकिन न्यायालय ने मौत की सजा के अमल पर रोक लगाने के लिए इसे उचित वजह नहीं माना।

दोषी पवन का दांव भी नहीं चला
दोषी पवन का खुद को नाबालिग बताने का दांव फेल हो गया। उच्चतम न्यायालय ने उसकी सुधारात्मक याचिका भी गुरुवार को खारिज कर दी। याचिका में उसने 2012 में हुए इस अपराध के समय खुद के नाबालिग होने का दावा किया था। न्यायमूर्ति एनवी रमण के नेतृत्व में छह न्यायाधीशों की एक पीठ ने पवन की याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह कोई मामला नहीं बनता।

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