ना गौर कर मेरे तरकीब-ए-मुहब्बत पर,

0

ना गौर कर मेरे तरकीब-ए-मुहब्बत पर,

काबिल-ए-गौर हैं मेरी तहरीरें मुहब्बत पर।

यूं तो इश्क दो दिलों के हिफाजत का मसला है,

पर हो रकाबत, चलती है शमशीरें मुहब्बत पर।

ये आग सीने में लगती है, धुआं भी नहीं उठता,

जलते-बुझते रहें है कई सरफिरे मुहब्बत पर।

इश्क ने झिंझोड़े है कई बादशाहों के महल,

पर कायम रहें हैं कई छत शहतीर-ए-मुहब्बत पर।

बंदिशों का दस्तूर तो सदियों पुराना है मगर,

बंधती-टूटती रही है ये जंजीरें मुहब्बत पर।

यूं तो हो गए निकम्मे कितने आदमी काम के,

पर चमके हैं कई गालिब-मीरे मुहब्बत पर।

यूं तो दरिया है इश्क तैरते भी हैं सारे,

मगर रहते हैं प्यासे कितने जजीरे मुहब्बत पर।

Previous article4 नवम्बर 2017 शनिवार, पंचांग एवं शुभ – अशुभ मुहूर्त
Next articleजानिए क्या है?कैमिकल युक्त फल-सब्‍जियां को धोने का सही तरीका

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here