मुस्लिमों में प्रचलित तीन तलाक और निकाह हलाला की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में ऐतिहासिक सुनवाई शुरू हो गई है। कोर्ट ने कहा कि पहले वह यह तय करेगा कि यह इस्लाम का मौलिक हिस्सा है या नहीं? मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने साफ कर दिया कि बहुविवाह पर फिलहाल विचार नहीं किया जाएगा, क्योंकि यह तीन तलाक से जुड़ा मुद्दा नहीं है।
न्यायमूर्ति जोसेफ कुरियन, आरएफ नरीमन, यूयू ललित और अब्दुल नजीर संविधान पीठ के अन्य न्यायाधीश हैं। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इस मामले में विचारणीय मुद्दे तय करते हुए कहा, ‘हम विचार करेंगे कि तीन तलाक इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है कि नहीं? और यदि है, तो क्या इसे मौलिक अधिकार के तहत लागू कराया जा सकता है?’ कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि वह इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि तीन तलाक धर्म का मौलिक हिस्सा है, तो वह उसकी संवैधानिक वैधता के सवाल में नहीं जाएगा। पीठ ने सुनवाई की शुरुआती रूपरेखा तय करते हुए कहा कि दो दिन याचिकाकर्ताओं की बहस सुनी जाएगी और उसके बाद दो दिन प्रतिपक्षियों की। फिर दोनों पक्षों को एक-एक दिन जवाब देने के लिए मिलेगा।
कई मुस्लिम देशों में खत्म
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान सहित बहुत से मुस्लिम देशों में एक बार में तीन तलाक खत्म हो चुका है। भारत धर्मनिरपेक्ष देश है। यहां भी खत्म होना चाहिए। यह इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है। इसलिए इसे धार्मिक आजादी के तहत संरक्षण नहीं मिल सकता।
केंद्र सरकार का पक्ष
केंद्र की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार तीन तलाक को लिंग आधारित भेदभाव मानती है। यह बराबरी के हक का उल्लंघन करता है। इसलिए सरकार तीन तलाक का विरोध करती है। अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी सोमवार को सरकार की ओर से दलील देंगे।