लग गया है पितृपक्ष, भूलकर भी न करें ये काम

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भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर अश्विन अमावस्या तक श्राद्ध कर्म किए जाते हैं. 15 दिन तक चलने वाले इस विशेष अवधि की शुरुआत इस साल 2018 में 24 सितंबर से हो रही है. श्राद्ध को पितृ पक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है. मान्यताओं के मुताबिक पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिय यह सबसे सही समय माना जाता है. कहा जाता है कि पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म और तर्पण करने से पितरों को शांति और मुक्ति मिलती है.

श्राद्ध तीन पीढ़ियों तक होता है. दरअसल, देवतुल्य स्थिति में तीन पीढ़ियों के पूर्वज गिने जाते हैं. पिता को वासु, दादा को रूद्र और परदादा को आदित्य के समान दर्जा दिया गया है. श्राद्ध मुख्य तौर से पुत्र, पोता, भतीजा या भांजा करते हैं. जिनके घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं है, उनमें महिलाएं भी श्राद्ध कर सकती हैं. लेकिन इस दौरान कुछ काम नहीं करने चाहिए वरना श्राद्ध कर्म में कमी मानी जाती है.

श्राद्ध में ये काम न करें

-पितृ पक्ष के दौरान जो पुरुष अपने पितरों को जल अर्पण कर श्राद्ध, पिंडदान आदि देते हैं, उन्हें जब तक पितृ पक्ष चल रहा है तब तक शराब और मांस को भी हाथ नहीं लगाना चाहिए.

-पंडितों को जब भी भोजन परोसें तो उन्हें गंदे आसन पर न बैठाएं. वहीं खाना परोसते वक्त कुछ बात न करें और न किसी की प्रशंसा करें. वहीं खाना परोसते वक्त बैठने, खाना रखने आदि के लिए कुर्सी का प्रयोग न करें.

-रात का वक्त राक्षसों का वक्त माना गया है. इसलिए रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए. वहीं संध्या के वक्त भी श्राद्ध कर्म करना सही नहीं माना जाता है. इसके अलावा युग्म दिनों (एक ही दिन को दो तिथियों का मेल) और अपने जन्मदिन पर भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए.

– किसी दूसरे व्यक्ति के घर या जमीन पर श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए. हालांकि जंगल, पहाड़, मंदिर या पुण्यतीर्थ किसी दूसरे की जमीन के तौर पर नहीं देखे जाते हैं क्योंकि इन जगहों पर किसी का अधिकार नहीं होता है. इसलिए यहां श्राद्ध किया जा सकता है.

-माना जाता है कि श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन करवाना जरूरी होता है. जो इंसान बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते और श्राप देकर वापस लौट जाते हैं.

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