लोकतंत्र में सरकार का विरोध ‘राष्ट्र विरोध’ नहीं-जस्टिस दीपक गुप्ता

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नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लागू होने के बाद देश के कई हिस्सों में इसके खिलाफ विरोध-प्रदर्शन चल रहा है. दिल्ली का शाहीन बाग इसका केंद्र बना हुआ है. इस मुद्दे पर पक्ष-विपक्ष आमने सामने हैं. जबकि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक गुप्ता ने विरोध प्रदर्शन को लेकर एक बयान दिया है. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में विरोध करने की आजादी होनी चाहिए. जस्टिस गुप्ता ने कहा कि हमारा संविधान हमें विरोध करने का अधिकार देता है और यह सबसे बड़ा अधिकार है. उन्होंने कहा, ”विरोध के बिना लोकतंत्र का अस्तित्व बेकार है.”

जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि जबतक कोई व्यक्ति कानून नहीं तोड़ता है या संघर्ष को नहीं उकसाता है, तबतक उसे दूसरे नागरिकों या सत्ता में बैठे नेताओं के विचार का विरोध करने का पूरा अधिकार है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में ”लोकतंत्र और विरोध” विषय पर बोलते हुए यह बात कही.

उन्होंने कहा कि मैं न्यायपालिका की आलोचना का भी स्वागत करूंगा, क्योंकि जब आलोचना होगी तभी सुधार होगा. जस्टिस गुप्ता ने कहा कि हमें आत्मनिरीक्षण भी करना चाहिए. जब हम आत्मनिरीक्षण करते हैं तो पाते हैं कि हमें कई फैसलों में सुधार की जरूरत होती है.

उन्होंने कहा, ” लोकतंत्र में अगर कार्यपालिका, न्यायपालिका, नौकरशाही और सशस्त्र बलों की आलोचना को देश विरोधी नहीं कहा जा सकता. संविधान ने सभी नागरिकों को सरकार पर सवाल उठाने का अधिकार दिया है. इसे छीना नहीं जा सकता. अगर हम ऐसा करते हैं तो यह हमारे लोकतंत्र के लिए खतरनाक होगा. ऐसे में हमारा लोकतंत्र और विकसित नहीं हो पाएगा.”

उन्होंने कहा कि अगर किसी देश को समग्र रूप से विकसित होना है तो न केवल आर्थिक अधिकारों बल्कि नागरिक अधिकारों को भी सुरक्षित रखना होगा. साथ ही असहमति और विरोध को भी न सिर्फ स्थान देना होगा बल्कि उन्हें प्रोत्साहित भी करना चाहिए.

जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि बहुमत का शासन लोकतंत्र का अभिन्न अंग है. लेकिन सत्ता में रहने वाले अगर दावा करते हैं कि वह सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं तो यह पूरी तरह निराधार है. यह नहीं कहा जा सकता कि वह जनता की सभी इच्छा का प्रतिनिधित्व करते हैं.

इसलिए, जब सत्ता में रहने वालों का दावा है कि वे उन सभी लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करते हैं जो पूरी तरह से निराधार दावा नहीं है. वे बड़ी संख्या में मतदाताओं द्वारा पोस्ट सिस्टम के पहले अतीत पर चुनी गई सरकार हो सकती है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि वे लोगों की संपूर्ण इच्छा का प्रतिनिधित्व करते हैं.

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