विश्वगुरू बनने के लिये श्रेष्ठ आचरण की आवश्यकता – श्री सुरेश भैयाजी जोशी

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उज्जैन  – ईपत्रकार.कॉम |रविवार को सामाजिक समरसता, समृद्धि और विश्व कल्याण की कामना के साथ विगत दो दिनों से भव्य स्तर पर आयोजित किये जा रहे शैव महोत्सव का विशाल समापन कार्यक्रम सन्तदास उदासीन आश्रम की सनातन व्यासपीठ में आयोजित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री सुरेश भैयाजी जोशी और विशिष्ट अतिथि केन्द्रीय स्वच्छता एवं जल संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती थीं। कार्यक्रम में महामण्डलेश्वर श्री विशोकानन्दजी, श्री विश्वात्मानन्दजी, श्री संविदानन्दजी, स्वामी श्री स्वरूपानन्दजी, श्री अतुलेशानन्दजी, श्री आशुतोष तीर्थजी, श्री भावनानन्दन यतिजी और श्री लक्ष्मणदासजी आदि विशेष रूप से उपस्थित थे।

जनप्रतिनिधियों में सांसद डॉ.चिन्तामणि मालवीय, प्रशासकीय अमले से प्रमुख सचिव संस्कृति श्री मनोज श्रीवास्तव, संभागायुक्त श्री एमबी ओझा, कलेक्टर श्री संकेत भोंडवे एवं अन्य अधिकारीगण और समिति की ओर से श्री विभाष उपाध्याय, श्री जगदीश शुक्ला एवं अन्य गणमान्य नागरिक मौजूद थे।

समापन के पूर्व तीन दिवसीय शैव महोत्सव के अनुभव साझा करते हुए बताया गया कि देश के अन्य ग्यारह ज्योतिर्लिंगों में आने वाले ग्यारह वर्षों के दौरान शैव महोत्सव आयोजित किये जायेंगे। अगले वर्ष सोमनाथ ज्योतिर्लिंग में शैव महोत्सव आयोजित किया जायेगा।

उल्लेखनीय है कि उज्जैन में भव्य स्तर पर आयोजित किये गये शैव महोत्सव भारतीय डाक विभाग द्वारा बारह ज्योतिर्लिंगों और शैव महोत्सव के कवर पेज पर आधारित पोस्टकार्ड और डाक टिकिट भी जारी किये गये। प्राचीन सनातन संस्कृति, भगवान शिव के स्वरूप, उनकी पूजन पद्धति और देवस्थानों के संरक्षण और प्रबंधन पर चार विशिष्ट सत्रों में वैचारिक संगोष्ठियों का भी आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न प्रान्तों से आये विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किये। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अन्तर्गत भव्य शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें सभी बारह ज्योतिर्लिंगों के आकर्षक प्रतिरूप के दर्शन हुए। शोभायात्रा के दौरान उज्जैन में पुन: सिंहस्थ-सा नजारा देखने को मिला। इस भव्य महोत्सव के दौरान पूरी उज्जैन नगरी शिवमय हो गई।

समापन कार्यक्रम का शुभारम्भ भगवान महाकालेश्वर के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन कर किया गया। महाकालेश्वर मन्दिर के पुजारियों द्वारा इस दौरान मंगलाचरण किया गया। अतिथियों द्वारा दो विशिष्ट पुस्तकों शिव महिम्न स्त्रोत की व्याख्या और ””””””””श्री द्वादश ज्योतिर्लिंग समागम पर आधारित पुस्तकों का विमोचन किया गया। शैव महोत्सव के आयोजन का प्रतिवेदन श्री विभाष उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत किया गया। बताया गया कि बाहर से आये 19 तथा स्थानीय कलाकारों द्वारा प्रदर्शनी स्थल में आकर्षक कलाकृतियां बनाई गईं। नेपाल के पशुपतिनाथ मन्दिर के प्रतिनिधि मण्डल ने भी शैव महोत्सव में शिरकत की। शैव महोत्सव आने वाले समय में नेपाल में भी भव्य स्तर पर आयोजित किया जायेगा।

जिन ग्यारह ज्योतिर्लिंगों में आने वाले समय में शैव महोत्सव का आयोजन होगा, वहां एक रजत ध्वज भी हर ज्योतिर्लिंग में हर वर्ष ले जाया जायेगा। कार्यक्रम में मंच पर महाकाल मन्दिर प्रबंध समिति के सदस्यों द्वारा प्रतीकात्मक रूप से सोमनाथ मन्दिर के सदस्यों को रजत ध्वज सौंपा गया। अगले वर्ष वहां होने वाले शैव महोत्सव में उज्जैन से यह रजत ध्वज सदस्यों द्वारा ले जाया जायेगा। सोमनाथ मन्दिर समिति के सदस्य श्री चावड़ा ने मंच से अगले वर्ष सोमनाथ में आयोजित होने वाले शैव महोत्सव में सम्मिलित होने के लिये सभी नगरवासियों को आमंत्रित किया।

शैव महोत्सव के दौरान शनिवार को मां शिप्रा की भव्य सन्ध्या आरती, मल्लखंब और बांसुरी वादन भी किया गया। इस भावना के साथ इस आयोजन का समापन हुआ कि शैव महोत्सव वैश्विक एकता में एक बड़ा पायदान साबित होगा।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री सुरेश भैयाजी जोशी ने शैव महोत्सव के सफलतापूर्वक आयोजन के लिये आयोजकों और उज्जैन शहरवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई दी। उन्होंने कहा कि हम सभी बड़े भाग्यशाली हैं कि पवित्र भारतभूमि में हम सबका जन्म हुआ। यह भूमि देवताओं, पुण्य और मोक्ष की भूमि है। यहां हर कंकड़ में भी शंकर विद्यमान हैं। नमस्कार करने की परम्परा भारत के अलावा और किसी अन्य देश में नहीं है, क्योंकि हमारे यहां प्रत्येक जीव में परमात्मा का निवास माना जाता है, इसलिये हम सभी को आदरपूर्वक नमस्कार करते हैं। यही बात भारतीयों को औरों से अलग करती है। यह संस्कृति हमें विरासत में प्राप्त हुई है। सम्पूर्ण मानव जाति को हम अपना मानते हैं। पिछले कुछ समय से हमारी सनातन संस्कृति की विस्मृति हो रही है, अत: इसे बचाने की और अनन्तकाल तक बनाये रखने का प्रयास हम सभी को करना है।

भारतीय संस्कृति जीवन के उच्च मूल्यों, आदर्शों और नैतिकता को अपने आचरण में लाने की संस्कृति है। शैव महोत्सव जैसे आयोजन इस आचरण को अपने जीवन में लाने का एक सशक्त और दृढ़ माध्यम हैं। ऐसे आयोजन समय-समय पर लगातार भव्य स्तर पर हों, तभी भारत और यहां के निवासी विश्वगुरू बन सकेंगे। यहां के लोग सब तरह की कठिनाई सहते हुए भी धर्मस्थानों, मेलों और धार्मिक आयोजनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। धर्म के मूल्य को समझने की प्रेरणा हमें सन्तजनों से मिलती है। शैव महोत्सव द्वारा इस ओर गहन चिन्तन और मनन किया गया है।

अन्त:करण में सेवाभाव रखने और आदर्शों को अपने जीवन में उतारने से ही एक श्रेष्ठ समाज की स्थापना होगी। इस भूमि को बचाने के लिये पंचमहाभूतों के प्रति और प्रकृति के प्रति हमें रक्षा का भाव रखना होगा। सनातन संस्कृति में प्रकृति को ही देवता माना जाता है और इसी भावना के साथ हम प्रकृति का उपयोग करें तो सारी पृथ्वी की रक्षा हो सकेगी।

शैव महोत्सव आमजन में प्रेरणा का कार्य करेगा। समाज के जागरण, प्रबोधन और समरसता का भाव लेकर चलने की भावना को जागृत करने की आज सशक्त आवश्यकता है। हमें भारत को भारत ही बनाकर रखना है। इसी बात को अपने अन्त:करण में धारण करना होगा, तभी एक जागृत समाज बन सकेगा और यही विश्व का नेतृत्व करेगा।

विशिष्ट अतिथि सुश्री उमा भारती ने अपने उद्बोधन में कहा कि शैव महोत्सव एक अत्यन्त सुन्दर कार्यक्रम है और इसके सफल आयोजन के लिये सभी बधाई के पात्र हैं। उन्होंने कहा कि उज्जैन की महिमा का परिचय सिंहस्थ-2004 में हुआ। इतनी भीड़ को कैसे संभाला जाये, ये सोचकर उस समय सिहरन पैदा हो जाती थी। इतना भव्य आयोजन शान्तिपूर्वक हो सका, यह केवल भगवान महाकालेश्वर के आशीर्वाद से ही संभव हुआ है। सिंहस्थ के दौरान जनता जनार्दन ने अपनी आस्था का विराट रूप दिखाया था। सिंहस्थ और कुंभ का आयोजन उज्जैन, प्रयाग, नासिक और हरिद्वार में जब आयोजित होता है, तब कहीं तो भीषण सर्दी तो कहीं भीषण गर्मी होती है। कष्ट उठाने के बावजूद श्रद्धालुओं की संख्या पर उसका कोई प्रभाव नहीं होता। आत्मा अजर-अमर है, यही सोचकर लोग सारे खतरे उठाते हुए भी बड़े-बड़े देवस्थानों में दर्शन के लिये आते हैं। ये सोच ही हमारी पुरातन संस्कृति की देन है।

हमारा देश इसी संस्कृति के कारण चल रहा है। भारत एकमात्र देश है, जिसने प्राचीन समय से लेकर अभी तक अपनी संस्कृति को संभालकर रखा है। भारतीयों के मन पर केवल और एकमात्र यहां की संस्कृति ही राज करती है। संस्कृति पर किसी तरह का खतरा आने पर पूजा-पाठ करने वाले पुरोहितों को भी शस्त्र उठाते हुए लोगों ने देखा है। अब भारतीय संस्कृति के पुनरूत्थान का समय आ गया है। इस देश में बसने वाले लोग सन्त, सती और शूरवीर हैं और इसी वजह से आत्मबल में पूरी दुनिया को भारत से ही शिक्षा लेनी होगी। शैव महोत्सव का आयोजन इसी पुनरूत्थान की ओर बढ़ने का सार्थक प्रयास है।

श्री माखनसिंह चौहान ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि शैव महोत्सव का आयोजन अदभुत और अकल्पनीय है। भगवान महाकालेश्वर की कृपा से यह आयोजन सफलतापूर्वक संभव हो सका है। उज्जैन शहर और यहां के रहवासी तो धन्य है ही लेकिन बाहर से आने वाले लोग भी बहुत भाग्यशाली हैं, जो इस आयोजन के साक्षी बने। वर्तमान में हमें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, परन्तु भारतवासी पूर्ण शान्ति और संयम के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। ये भावना हमारी सनातन संस्कृति और ऋषियों के द्वारा प्रदाय की गई पूंजी है। तत्वज्ञान को चरितार्थ करने की आज के समय में आवश्यकता है। इसके लिये प्रत्येक घर और प्रत्येक जन को सक्षम बनकर एक देशव्यापी आन्दोलन को चलाना होगा, तभी हम पूर्ण विश्व को शान्ति और मानव मूल्यों का पाठ पढ़ा सकेंगे। इस तरह के आयोजन लगातार करने होंगे, तभी जन-जन के हृदय में सनातन संस्कृति और परमेश्वर के प्रति आस्था की पुनर्जागृति संभव हो सकेगी।

कार्यक्रम का कुशल संचालन श्री मयंक शुक्ला ने किया और आभार पं.प्रदीप पुजारी ने व्यक्त किया।

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