51 शक्तिपीठों में से एक है ये स्थान, यहां गिरी थीं माता सती की उंगलियां

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बंगाल की राजधानी कोलकाता में मां काली का सबसे बड़ा मंदिर स्थित है, जो दक्षिणेश्वर काली मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। माना जाता है कि कोलकाता में मां काली स्वयं निवास करती हैं और उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम कोलकाता पड़ा। हुगली नदी के तट पर बसा यह काली मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि इस जगह पर माता सती के दाएं पैर की चार उंगलियां गिरी थीं। दक्षिणेश्वर काली मंदिर को काली का दिव्य धाम भी कहा जाता है। कलियुग में भक्तों के लिए यह जगह किसी सिद्ध स्थान से कम नहीं है। यहां देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु मां काली के दर्शनों के लिए आते हैं।

कहा जाता है कि एक समय पर यहां रासमणि नाम की रानी थी। रानी मां काली की बड़ी भक्त थी। वह हर साल समुद्र के रास्ते से होते हुए काशी के काली मंदिर में पूजा-अर्चना करने जाती थी। एक बार रानी अपने संबंधियों और नौकरों के साथ काली मंदिर जाने की तैयारियां कर रही थी। तभी एक रात उन्हें सपने में मां काली ने दर्शन दिए और इसी जगह पर मंदिर बनवाने और उसमें ही मां की सेवा करने के आदेश दिया। देवी के आदेश पर रानी ने वर्ष 1847 में यहां मंदिर बनवाना शुरु किया, जो की वर्ष 1855 तक पूरा हो गया।

मंदिर दो मंजिला और नौ गुंबदों पर बना हुआ है। इस गुंबदों पर खड़े लगभग सौ फीट ऊंचे मंदिर के गर्भगृह में मां काली की सुंदर प्रतिमा है, जिसे भवतारिनी के नाम से जाना जाता है। मंदिर में सबसे आकर्षण भीतरी भाग में चांदी से बनाया गया कमल का फूल है, जिसकी हजार पखुंड़ियां हैं, जिस पर मां काली अपने अस्त्र-शस्त्रों के साथ भगवान शिव पर खड़ी हुई हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर में गुरु रामकृष्ण परमहंस को मां काली ने साक्षात् दर्शन दिए थे। मंदिर परिसर में परमहंस देव का कमरा है। जिसमें उनका पलंग तथा उनके स्मृतिचिह्न उनकी याद में रखे हुए हैं। बाहर एक पेड़ के नीचे उनकी पत्नी की समाधी बनाई गई है।

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