अक्ल की दुकान -एक कहानी

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एक लड़का था जिसका नाम ज्ञान प्रसाद था। जैसा नाम वैसा काम, अक्ल में उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता था। एक दिन अपने घर के बाहर उसने बड़े बड़े अक्षरों में लिखा – “अक्ल की दुकान – यहाँ अक्ल मिलती है।” वहाँ से गुजरने वाले लोग यह देखते, हंसते और आगे बढ़ जाते। ज्ञान प्रसाद को पूरा विश्वास था की उसकी दुकान जरूर चल निकलेगी।

एक दिन एक अमीर महाजन का बेटा वहाँ से गुजरा। अक्ल की दुकान देख कर उससे नहीं रहा गया, उसने अंदर जाकर ज्ञान प्रसाद से पूछा – “ यहाँ कैसी अक्ल मिलती है और उसकी क्या कीमत है? ” ज्ञान प्रसाद ने कहा – “ यह इस पर निर्भर करता है कि तुम कितना पैसा खर्च करते हो। ” अमीर लड़के का नाम पप्पू था। पप्पू ने जेब से एक रुपया निकाल कर पूछा इसके बदले कौन सी अक्ल मिलेगी और कितनी? ज्ञान प्रसाद ने कहा कि भाई एक रुपये की अक्ल से तुम अपने एक लाख रुपये बचा सकते हो। पप्पू ने एक रुपया ज्ञान प्रसाद को दे दिया, बदले में ज्ञान प्रसाद ने पप्पू को एक कागज पर यह अक्ल लिख कर दी – जहाँ दो लोग लड़ रहे हों वहाँ खड़े मत रहना।

पप्पू ने घर पहुंचकर अपने पिता को कागज दिखाया और अक्ल की दुकान के बारे में बताया। उसका पिता बहुत कंजूस था। उसने जब वह कागज पढा तो गुस्से से आग बबूला हो गया, पप्पू को डांटते हुए हुए बोला – “अक्ल की दुकान ऐसी कैसी दुकान होती है? ” पप्पू को लेकर उसका पिता ज्ञान प्रसाद के पास गया और कागज की पर्ची फेंकते हुए बोला – “मेरा रुपया वापस लौटाओ जो मेरे बेटे ने तुम्हें दिया था। ” ज्ञान प्रसाद ने कहा – “ ठीक है मैं लौटा देता हूं, लेकिन मेरी यह शर्त है कि तुम्हारा बेटा मेरी दी हुई अक्ल पर कभी अमल नहीं करेगा। ” कंजूस महाजन इस बात पर राजी हो गया ज्ञान प्रसाद ने उसका एक रुपया वापस लौटा दिया।

उस शहर के राजा की दो रानियाँ थीं। एक दिन राजा अपनी रानियों के साथ जोहरी बाजार से गुजर रहा था। दोनों रानियों को हीरे का एक हार पसंद आ गया। दोनों ने यही सोचा की महल पहुंचकर अपनी दासी से वो हार मंगवा लेंगे। संयोगवश दोनों दासियाँ एक ही समय पर हार लेने पहुंच गईं। जोहरी ने दासियों से कहा कि उसके पास फिलहाल वो एक ही हार उपलब्ध है, वैसा ही दूसरा हार बनने में कुछ दिन का समय लगेगा। दोनों दासियाँ आपस में फैसला करके उसे बताएं की पहले हार किसको चाहिये? बड़ी रानी की दासी बोली की देखो मैं बड़ी रानी की सेवा करती हूँ, इसलिए यह हार मैं लेकर जाऊंगी। दूसरी दासी बोली कि राजा छोटी रानी को ज्यादा प्यार करते हैं। इसलिए यह हार मुझे ले जाने दो वरना अगर छोटी रानी ने राजा से शिकायत कर दी तो तुम्हारी खैर नही। बात बढ़ते बढ़ते दोनों दासियों में तू तू मैं मैं होने लगी और उन्होंने वहीं पर लड़ना शुरू कर दिया। पप्पू वहीं दुकान के पास खड़ा था और वह दासियों की लड़ाई बड़े मजे लेकर देख रहा था। दोनों दासियों में जब लड़ाई ज्यादा बढ़ गई तो उन्होंने फैसला किया कि वे बिना हार लिए वहाँ से जाएंगी और अपनी अपनी रानियों से शिकायत करेंगी। दासियों ने पप्पू को देखा तो उससे कहा की तुम्हें जो कुछ भी यहां पर हुआ उसकी गवाही देनी पड़ेगी।

दासियों ने अपनी अपनी रानियों से शिकायत की, रानियों ने राजा से। राजा ने दासियों को बुलवाया और पूछा कि तुम दोनों में झगड़ा क्यों हुआ और झगड़े की शुरुआत किसने की? दासियों ने कहा महाराज किसने झगड़ा किया ये आप महाजन के बेटे पप्पू से पूछ लीजिए, वो वहीं मौजूद था। राजा ने आदेश दिया कि महाजन के घर संदेश भिजवा दिया जाए, कल उसके बेटे पप्पू को गवाही देने के लिए राजमहल आना होगा।

उधर राज महल से गवाही के लिए बुलावा आने पर महाजन जी हो गए परेशान और पप्पू हैरान, दौड़े दौड़े दोनों पहुंचे अक्ल की दुकान। माफी मांगी और मदद भी मांगी। ज्ञान प्रसाद ने कहा – “ मदद तो मैं कर दूंगा, लेकिन अब मैं जो तुम्हें अक्ल दूंगा उसकी कीमत पांच हजार रुपये होगी। ” मरता क्या ना करता, कंजूस पिता ने कुढ़ते हुए पांच हजार रुपये दिये। ज्ञान प्रसाद ने अक्ल दी कि गवाही के समय पप्पू पागलपन का नाटक करे और दासियों के खिलाफ कुछ ना कहे क्योंकि अगर पप्पू छोटी रानी की दासी की तरफ बोलता तो बड़ी रानी नाराज हो जाती और बड़ी रानी की दासी की तरफ बोलता तो छोटी रानी नाराज हो जाती।

अगले दिन पप्पू पहुंचा राजदरबार में और करने लगा पागलों जैसी हरकतें। राजा ने उसे वापस भेज दिया और कहा की इस पागल की गवाही पर भरोसा नहीं कर सकते। कोई गवाह ना होने की वजह से राजा ने अपनी रानियों को आदेश दिया कि वे दोनों अपनी अपनी दासियों को लड़ाई करने के लिए एक समान दंड दें, क्योंकि यह पता नहीं लग पा रहा था कि झगड़ा शुरु किसने किया। दोनों रानियों को अपनी अपनी दासियों को सजा देनी पड़ी। दासियों ने अपनी अपनी रानियों को पप्पू के खिलाफ भड़काया की कैसे उसने सब कुछ जानते हुए भी गवाही नहीं दी बल्कि पागलपन का नाटक किया। इस बात पर दोनों रानियों को पप्पू पर बहुत गुस्सा आया और उन्होंने राजा को पप्पू के नाटक के बारे में बताने का फैसला लिया।

पप्पू को जब पता लगा की रानियाँ उस पर गुस्सा हो रही हैं और उसे राजा से सजा दिलवाने की तैयारी में हैं तो पप्पू हो गया और भी ज्यादा परेशान फिर महाजन को साथ लेकर पहुंचा फटाफट अक्ल की दुकान। ज्ञान प्रसाद ने पप्पू से कहा – “ देखो भाई इस बार तो अक्ल की कीमत है दस हजार रुपये। ” महाजन ने दस हजार रुपये दिये। पैसे लेकर ज्ञान प्रसाद बोला की एक ही रास्ता है, तुम उस हार के जैसे दो हार बनवाकर दोनों रानियों को तोहफ़े में देदो। पप्पू बोला – “ अरे ऐसे कैसे, वो हार तो पचास हजार रुपये का है। ” ज्ञान प्रसाद बोला कि देखो मैंने तुम्हें पहली बार में एक रुपये में एक लाख रुपये बचाने की अक्ल दी थी, मैंने तुमसे कहा था कि मैं तुम्हें एक लाख रुपये बचाने की अक्ल दे रहा हूं और तुम्हें बताया था कि जहां दो लोग झगड़ रहे हो वहां खड़े मत रहना। तुमने उस दिन अपने पैसे वापस ले लिए और मेरी बात नहीं मानी, तुम झगड़े के पास ही खड़े हो गए। अब जेल जाने की तैयारी करो या फिर दोनों रानियों को हार भेंट करो। कंजूस महाजन सर पीट कर रह गया और यह नतीजा था ज्ञान प्रसाद की सलाह ना मानने का।

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