अनोखा शिव मंदिर जहां पूजा करना है मना

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यह आपको पढ़ने में अजीब तो लग रहा होगा की कोई ऐसा मंदिर भी हो सकता जहाँ पूजा नहीं कर सकते जी हाँ यह सत्य है। उत्तराखंड राज्य के जनपद पिथौरागढ़ से धारचूला जाने वाले मार्ग पर लगभग 76 किलोमीटर दूर स्थित है ग्राम सभा बल्तिर । यहीं पर एक अभिशप्त देवालय है नाम है एक हथिया देवाल। वैसे तो यह मंदिर भगवान भोलेनाथ को समर्पित है और यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आकर भगवान भोलेनाथ का दर्शन करते हैं,लेकिन यहां भगवान की पूजा नहीं की जाती। भक्त गण मंदिर की अनूठी स्थापत्य कला को देखकर पुनः अपने घरों को लौट जाते हैं।

आइये जानते है ऐसा क्यों । इस मंदिर का नाम एक हथिया देवाल है जिसका मतलब है – एक हाथ से बना हुआ। यह मंदिर बहुत प्राचीन है । किसी समय यहां राजा कत्यूरी का शासन था। उस दौर के शासकों को स्थापत्य कला से बहुत लगाव था।

मंदिर को लेकर किंवदंती है कि इस ग्राम में एक मूर्तिकार रहता था जो पत्थरों को काटकाटकर मूर्तियाँ बनाया करता था। एक बार किसी दुर्धटना में उसका एक हाथ चला गया। एक हाथ कट जाने पर उसे सबकी उलाहना का शिकार होना पड़ा । उसने प्रण कर लिया कि वह अब उस गाँव में नहीं रहेगा और वहाँ से कहीं और चला जायेगा। यह प्रण करने के बाद वहएक रात अपनी छेनी, हथौडी सहित अन्य औजार लेकर वह गाँव के दक्षिणी छोर की ओर निकल पडा। गाँव का दक्षिणी छोर प्रायः ग्रामवासियों के लिये शौच आदि के उपयोग में आता था। वहाँ पर एक विशाल चट्टान थी ।अगले दिन प्रातःकाल जब गाँव वासी शौच के उस दिशा में गये तो पाया कि किसी ने रात भर में चट्टान को काटकर एक देवालय का रूप देदिया है। कैतूहल से सबकी आँखे फटी रह गयीं। सारे गांववासी वहाँ पर एकत्रित हुये परन्तु वह कारीगर नहीं आया जिसका एक हाथ कटा था। सभी गांववालों ने गाँव मे जाकर उसे ढूंढा और आपस में एक दूसरे उसके बारे में पूछा परन्त्तु उसके बारे में कुछ भी पता न चल सका , वह एक हाथ का कारीगर गाँव छोडकर जा चुका था। इसीलिए इस जगह का नाम हथिया देवाल पड़ा |

जब स्थानीय पंडितो ने उस देवालय के अंदर उकेरी गयी भगवान शंकर के लिंग और मूर्ति को देखा तो यह पता चला कि रात्रि में शीघ्रता से बनाये जाने के कारण शिवलिंग का अरघा विपरीत दिशा में बनाया गया है जिसकी पूजा फलदायक नहीं होगी बल्कि दोषपूर्ण मूर्ति का पूजन अनिष्टकारक भी हो सकता है। बस इसी के चलते रातो रात स्थापित हुये उस मंदिर में विराजमान शिवलिंग की पूजा नहीं की जाती। पास ही बने जल सरोवर में (जिन्हे स्थानीय भाषा में नौला कहा जाता है) मुंडन आदि संस्कार के समय बच्चों को स्नान कराया जाता हैं।

वही एक एक अन्य कहानी के अनुसार यह कहा जाता है की एक बार एक राजा ने एक कुशल कारीगर का एक हाथ मात्र इसलिए कटवा दिया की वो कोई दूसरी सुन्दर ईमारत न बनवा सके। लेकिन राजा कारीगर के हौसले को नहीं तोड़ पाया। उस कारीगर ने एक ही रात में एक हाथ से एक शिव मंदिर का निर्माण किया और हमेशा के लिए वो राज्य छोड़कर चला गया।

जब जनता को यह बात मालूम हुई तो उसे बहुत दुख हुआ। लोगों ने यह फैसला किया कि उनके मन में भगवान भोलेनाथ के प्रति श्रद्धा तो पूर्ववत रहेगी लेकिन राजा के इस कृत्य का विरोध जताने के लिए वे मंदिर में पूजन आदि नहीं करेंगे।

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