अयोध्या केस: बाबरी मस्जिद की जमीन हिंदू पक्ष को दी जाए- मुस्लिम संगठन

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अयोध्या के राम मंदिर और बाबरी मस्जिद मामले में समझौते की एक किरण फिर से दिखाई दी है. इस बार समझौते के लिए कोशिश कर रहे लोग किसी आखिरी नतीजे पर पहुंचते भी दिख रहे हैं.

दरअसल लखनऊ में इंडियन मुस्लिम्स फॉर पीस नामक संस्था ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि मुस्लिम संगठनों के तमाम लोग इस बात के लिए राजी हैं कि अयोध्या में आपसी समझौते से मामले का हल निकाला जाए.

इसके लिए संगठन ने बकायदा एक मसौदा तय किया है जिसके मुताबिक अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड के जरिए हिंदू पक्ष को सौंप दिया जाएगा और उसके लिए बकायदा सुप्रीम कोर्ट में अर्जी भी दी जाएगी.

बनेगी हिंदू-मुस्लिम एकता की पहचान?
संगठन के पदाधिकारियों के मुताबिक यह कदम इसलिए उठाया जा रहा है ताकि हिंदुस्तान में हिंदू-मुस्लिम एकता की पहचान बनी रहे और किसी पक्ष को नीचा ना देखना पड़े. इस संगठन में तमाम पदाधिकारी वही लोग हैं जो लोग पिछले काफी दिनों से आर्ट ऑफ लिविंग के श्री श्री रविशंकर के साथ समझौते को लेकर बातचीत कर रहे हैं.

नए संगठन का गठन इन सभी लोगों के द्वारा किया गया, जिसमें रिटायर्ड फौजी और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति जमीरउद्दीन शाह, रिटायर्ड जज, रिटायर्ड आईएएस अनीस अंसारी, रिटायर्ड आईपीएस, रिसर्च फाउंडेशन के अतहर हुसैन समेत शहर के कई गणमान्य मुस्लिम और हिंदू लोग शामिल हुए.

क्या कहता है मसौदा
ताजा मसौदे के मुताबिक अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड के जरिए हिंदू पक्ष को सौंप दिया जाएगा . इसके लिए सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से संगठन की सहमति के बाद बकायदा अर्जी दी जाएगी, जिसमें इसी समझौते पर सुप्रीम कोर्ट से मान्यता देने की गुहार लगाई जाएगी.

सूत्रों के मुताबिक यह सारा मसौदा सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड की सहमति से ही तैयार किया गया है लेकिन इसकी मान्यता के लिए इसे कानूनी तौर तरीके से आगे बढ़ाया जाएगा. इंडियन मुस्लिम्स फॉर पीस संगठन के पदाधिकारियों की तरफ से इस मसौदे में कुछ शर्तें भी रखी गई हैं जिनके आधार पर बाबरी मस्जिद पक्ष को राम मंदिर के लिए जमीन छोड़ने के लिए तैयार किया गया है.

मसौदे में कुछ मुख्य शर्तें
सबसे पहला और मुख्य बिंदु है, यह ग्रुप चाहता है कि यह पूरा मामला आउट ऑफ कोर्ट सैटल किया जाए. दूसरा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के जरिए जमीन सरकार के सुपुर्द की जाए और यह फिर हिंदू भाइयों को गिफ्ट के तौर पर दिया जाए, ताकि देश में भाईचारे का संदेश जाए.

तीसरा जिन्होंने बाबरी मस्जिद को शहीद किया है उन्हें जल्द से जल्द सजा दी जाए और आगे से कड़े कानून बनाया जाए जिससे कि किसी भी धार्मिक स्थल को नुकसान पहुंचाने वाले को मौजूदा अधिकतम 3 महीने की सजा को बढ़ाकर कम से कम 3 साल किया जाए.

संगठन की आखिरी मांग है और ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के जरिए यह सुनिश्चित किया जाए कि जो भी पुरानी मस्जिदें दरगाह है और उसमें नमाज पढ़ने की जगह हैं. वहां पर मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की इजाजत दी जाए.

संगठन की बैठक
संगठन की इस बैठक और प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य अतिथि के तौर पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति जमीरउद्दीन शाह भी शामिल हुए. जमीरउद्दीन शाह ने कहा कि उनकी सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जफर फारुकी से भी बातचीत हो चुकी है और वह इस मसौदे पर पूरी तरह से तैयार हैं. उन्होंने यह भी दावा किया कि जल्दी ही बोर्ड की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में समझौते की चिट्ठी भी भेजी जाएगी.

कानून के जानकारों के मुताबिक अगर संगठन के इस दावे पर सुन्नी वक्फ बोर्ड अमल करता है. इस समझौते से राम मंदिर और बाबरी मस्जिद की सुलह का रास्ता बिल्कुल साफ हो जाएगा.

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