तीन तलाक शादी खत्म करने का सबसे घटिया तरीका: सुप्रीम कोर्ट

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एक बार में तीन तलाक को पाप के सामान बताए जाने पर शुक्रवार को सुप्रीमकोर्ट ने सहज सवाल किया कि जो चीज ईश्वर की निगाह में पाप है उसे इंसान द्वारा बनाए गए कानून में सही कैसे कहा जा सकता है। कोर्ट ने टिप्पणी में ये भी कहा कि तीन तलाक शादी तोड़ने का सबसे खराब और अवांछित तरीका है लेकिन कुछ विचारधाराएं उसे सही मानती हैं।

सुप्रीमकोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ आजकल तीन तलाक की वैधानिकता पर विचार कर रही है। दूसरे दिन की बहस के दौरान हुए सवाल जवाब में ये टिप्पणियां हुईं।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने तीन तलाक का विरोध करते हुए कहा कि उनकी निजी राय में यह पाप है लेकिन आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड इसे वैध मानता है। पीठ ने कहा कि कुछ लोग मौत की सजा को भी पाप मानते हैं लेकिन ये वैध है। तभी जस्टिस कुरियन जोसेफ ने सवाल किया कि जो चीज ईश्वर की निगाह में पाप है वो क्या इंसान के बनाए कानून में सही हो सकती है। इस पर खुर्शीद ने कहा कि वे भी यही कह रहें हैं कि ये सही नहीं है।

नब्बे फीसद समस्या खत्म हो जाएगी
खुर्शीद ने कहा कि अगर एक बार मे बोले गये तीन तलाक को एक तलाक माना जाए तो 90 फीसद समस्या दूर हो जाएगी। तीन महीनें में इद्दत अवधि बिताने के बीच पति पत्नी को सुलह का मौका मिलता है। खुर्शीद ने कहा कि निकाह करार होता है उसमें लड़की की ओर से भी शर्त शामिल की जा सकती है। कोर्ट ने पूछा कि क्या निकाहनामें में तीन तलाक नहीं दिये जाने की बात शामिल हो सकती है। खुर्शीद ने हां में जवाब देते हुए कहा कि इससे तीन तलाक मुश्किल होगा। हालांकि राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच की ओर से पेश राम जेठमलानी ने इसका खंडन किया। कहा निकाह अलग चीज है उसमें ऐसी शर्ते नहीं शामिल होतीं।

शादी तोड़ने का सबसे खराब तरीका
खुर्शीद की बहस के दौरान जस्टिस आरएफ नारिमन ने टिप्पणी में कहा कि तीन तलाक इस्लाम में शादी तोड़ने का सबसे खराब और अवांछित तरीका है लेकिन कुछ विचारधाराएं इसे वैध मानती हैं। पीठ ने तीन तलाक के बारे में दुनिया के अन्य देशों, विशेष तौर पर सऊदी अरब में प्रचलित व्यवस्था के बारे में पूछा।

कामन सिविल कोड मुश्किल , पर पति पत्नी को तो बराबरी दो
जेठमलानी ने संविधान के नीति निदेशक तत्वों में कामन सिविल कोड का जिक्र करते हुए कहा कि विभिन्न धर्मो का देश होने के कारण इसे लागू करना मुश्किल हो सकता है लेकिन एक ही धर्म के मानने वाले पति पत्नी को तो कानून में बराबरी का हक दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि तीन तलाक बराबरी के मौलिक अधिकार का हनन है। इसमें महिलाओं के साथ लिंग आधारित भेदभाव है। उन्हें पुरुष के समान अधिकार नहीं है। जब पीठ ने कहा कि यहां राज्य द्वारा भेदभाव की बात नहीं है ये पर्सनल ला की बात है। तो जेठमलानी का जवाब था कि जो चीज कोर्ट के जरिये लागू हो उसे कानून ही कहा जाएगा।

इस्लाम के खिलाफ है तीन तलाक
पूर्व केन्द्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने आल इंडिया वोमेन पर्सनल ला बोर्ड की ओर से तीन तलाक की खिलाफत करते हुए कहा कि ये इस्लाम का अभिन्न हिस्सा तो नहीं ही है बल्कि ये इस्लाम की हर अच्छी चीज के खिलाफ है। ये इस्लाम के पूर्व का प्रचलन है। जिसमें लड़कियों को जिन्दा दफना दिया जाता था। इस्लाम ऐसी स्थिति में सुधार के लिए आया था। उन्होंने कहा कि ये सारी चीजें इस्लाम में बाद में आयी हैं। कुरान में दी गई व्यवस्था बिल्कुल सही है जिसमें इद्दत का समय गर्भ तय करने के लिए ही नहीं बल्कि पति पत्नी के बीच सुलह के कूलिंग पीरियड के तौर पर है।

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