शादी महिला-पुरूष के बीच एक धार्मिक संबंध है। जोकि एक इनायत है जिसमें शुद्धता और निर्मलता आधारित होती है। अध्यात्कमिक ही नहीं वैज्ञानिक सत्य है कि महिला और पुरुष एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। दोनों का मिलन ही अधूरापन दूर करता है। शादी की नींव कुछ बातों पर टिकी होती है-
* श्रीराम और देवी सीता का दांपत्य जीवन हर किसी को प्रेरित और प्रभावित करता है। तभी तो आनंद उत्साह मंगल की कामना के लिए आज भी श्री सीताराम विवाह का गायन करते हैं। यही नहीं पारिवारिक जीवन में कोई समस्याएं आती हैं तो उसका समाधान भी रामजानकी विवाह के स्मरण से ढूंढते हैं। उनके वैवाहिक जीवन से सीख लेते हुए विवाहितों को अपनी उत्तेजनाओं को काबू में रखना चाहिए। अनियंत्रित नहीं होना चाहिए।
* अपने रिश्ते के प्रति पूरी तरह से समर्पित रहना चाहिए। एक दूसरे की इच्छाओं को सम्मान देते हुए जीवनसाथी की खुशी के लिए अपने से अधिक उनकी खुशियों का ध्यान रखना चाहिए।
* जीवन में जैसे भी समय और हालात आएं उसके अनुरूप स्वयं को ढाल लेना चाहिए। श्रीसीताराम जी ने कभी भी अपने वैवाहिक संबंध में कोई कमी नहीं देखी थी।
* शारीरिक, मानसिक और आर्थिक स्तर से हमेशा एक-दूसरे के साथ रहना चाहिए।
* दंपत्ति के रिश्ते को मजबूत बनाने में संतान की अहम भूमिका होती है। उसे अच्छे संस्कार देकर पोषित करना चाहिए। लव और कुश ने अपनी माता को पवित्र साबित करने में अहम भूमिका निभाई थी।
* वैवाहिक जीवन में एक दूसरे के मनोभावो को समझना और उनकी कद्र करना दोनों का कर्तव्य है। श्रीसीताराम जी बातचीत के लिए शब्दों का प्रयोग किए बिना ही एक दूसरे की बात समझ जाते थे।