केंद्र सरकार ने दी हाई कोर्ट में दलील दी है कि सीएफएल फर्म जब नियमों का पालन यूरोप में करती है तो भारत में ऐसा करने मे उन्हें क्या दिक्कत है. सीएफएल ब्लब बनाने वाली ज्यादातर मल्टीनेशनल कंपनियां भारत में बने ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल का पालन नहीं करना चाहती है, जबकि ऐसी सभी कंपनिया सभी तरह के नियमों का पालन यूरोप और बाकी के देशों में कर रही हैं. ये दलील केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट मे सीएफएल कंपनियों की तरफ से लगाई गई एक याचिका के जवाब में कही है.
सरकार ने कहा कि नए रूल इंटरनेशनल कंवेंशन के अनुसार है. मरकरी से बनी इन लाइटों को इस तरह खुले में फेंकने की इजाजत नहीं दी जा सकती है क्योंकि इनका पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. सीएफएल बनाने वाली ज्यादातर कंपनियां मल्टीनेशनल हैं, जो बाकी देशों में सब नियमों का पालन कर रही है, लेकिन भारत में ऐसा नहीं करना चाह रही हैं.
वहीं कपंनियों की तरफ से पेश हुए वकील पी चिदंबरम ने दलील दी कि कंपनियां नए नियमों का पालन नहीं कर पाएगी क्योंकि इन नियमों के अनुसार उनको पुराने सीएफएल को उपभोक्ताओं से वापिस लेकर उनका डिस्पोजल करना होगा. सरकार इस तरह के असंभव काम को करने के लिए कंपनियों को कह रही है. सरकार भारत की तुलना अन्य देशों से नहीं कर सकती है. ऐसे में नए नियमों के तहत कोई फर्म बिजनेस नहीं कर पाएगी.
कोर्ट ने कहा कि वो 28 सितंबर अपना आदेश सुनाएगी. हाई कोर्ट को 28 सितंबर को सीएफएल कंपनियों की उस अर्जी पर अपना फैसला सुनाएगी, जिसमें सरकार के ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल 2016 के एक रूल पर रोक लगाने की मांग की गई है. इस मामले में सीएफएल बनाने वाली कंपनियों ने सरकार की 23 मार्च की अधिसूचना को चुनौती दी है. पिछली सुनवाई मे केंद्र सरकार ने कहा था कि सीएफएल बनाने वाली कंपनियां ही उनकी अवधि खत्म होने के बाद उनको उपभोक्ताओं से वापिस लेकर उनका निस्तारण करने के लिए जिम्मेदार हैं.