जानिए क्यों ,भारतीय मुसलमानों में ‘रमजान’ की जगह ‘रमदान’ कहने का चलन बढ़ रहा है

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हर साल आने वाला वह महीना फिर आ चुका है. मुसलमानों ने रोजे रखने शुरू कर दिए हैं. और साथ ही इस दौरान एक शब्द के प्रयोग को लेकर बहस फिर छिड़ गई है : इस महीने को रमजान कहा जाए या रमदान?

ऐतिहासिक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के ज्यादातर मुसलमान इस महीने को रमजान कहते आए हैं. फारसी भाषा से आया यह शब्द भारत में उर्दू से लेकर बांग्लाभाषी मुसलमानों तक समान रूप से प्रचलित रहा है. हालांकि इसके साथ ही पिछले तकरीबन दो दशक में रमजान के स्थान पर रमदान – जिसे मुसलमान अरबी शब्द कहते हैं, बोलने का चलन तेजी से बढ़ा है.

भाषाई शुद्धता के पैमाने पर यह चलन सही नहीं है
इस महीने के नाम का यदि हम अरबी से रोमन ट्रांसलिट्रेशन या लिप्यांतरण करके हिंदी में उच्चारण करें तो यह होगा ‘रमदान’. यहां बड़ी दिलचस्प बात है कि इस नाम में ‘द’ शब्द एक तरह से रहस्यमयी है क्योंकि प्राचीन अरब में द का उच्चारण जिस तरह से होता था उस जैसे उच्चारण वाला शब्द न तो हिंदी में है और न ही अंग्रेजी में और इसलिए इसका उच्चारण गैरअरबी लोगों के लिए काफी मुश्किल है. भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमान इसे ‘द’ कहते हैं तो उपमहाद्वीप के बाहर पश्चिमी देशों के मुसलमान ‘द’ का उच्चारण ‘ड’ करते हैं.

सबसे बड़ी विडंबना है कि आज अरबी लोग ‘द’ का उच्चारण जिस तरह करते हैं वह तब से बिल्कुल अलग है जब कुरान लिखी गई. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ लैंगुएज एंड लिंग्युस्टिक के अंक में छपा एक शोधपत्र भी इस बात की तस्दीक करता है. यह हैरानी की बात नहीं है कि किसी भी भाषा के शब्दों और अक्षरों में समय के साथ ये बदलाव होते ही हैं. इस आधार पर कहा जा सकता है कि कुरान को आज अरबी उच्चारण के साथ पढ़ने वाले भी उसका पूरी तरह से सही उच्चारण नहीं करते.

भाषा किसी समुदाय विशेष की पहचान और दिशा-दशा का प्रतीक होती है और लोग अक्सर उसे एक आदर्श स्वरूप में रखने की कोशिश करते हैं. लेकिन अरबी के उदाहरण से स्पष्ट है कि ऐसा हो नहीं पाता.

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