बालाघाट – ईपत्रकार.कॉम |आधुनिक होते समाज में पढ़ी लिखी महिलायें भी प्रसव के बाद शिशु को स्तनपान कराना मुनासिब नहीं समझती है और शिशु को उसके अधिकार से वंचित कर उसे संक्रमण एवं बीमारियों के खतरे में डाल देती है। प्रसव के बाद शिुश के लिए मां का दूध सबसे जरूरी है, मां के दूध का कोई विकल्प नहीं है। प्रसव के एक घंटे के भीतर शिशु को मां को दूध पिलाया जाना चाहिए। इससे शिशु मृत्यु दर में कमी लायी जा सकती है। शिशु को स्तनपान कराने के प्रति जागरूकता के लिए 01 अगस्त 2018 को कलेक्ट्रेट कार्यालय में उन्मुखीकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया था।
इस कार्यशाला में बाल विकास परियोजना अधिकारी, आंगनवाड़ी पर्यवेक्षक, स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग, स्वच्छता मिशन, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग एवं आजीविका मिशन के प्रतिनिधि मौजूद थे। कार्यशाला में भोपाल से पधारे श्री रमेश मेनन एवं श्री मुकेश स्वर्णकार, क्लिंटन फांउडेंशन के श्री परिहार, महिला एवं बाल विकास विभाग की जिला कार्यक्रम अधिकारी श्रीमती लीना चौधरी, जिला महिला सशक्तिकरण अधिकारी सुश्री वंदना धूमकेती द्वारा स्तनपान से जुड़ी जनहित की रोचक एवं ज्ञानवर्धक जानकारी दी गई।
कार्यशाला में बताया गया कि प्रसव के तत्काल बाद मां को शिशु को स्तनपान कराना शुरू कर देना चाहिए। प्रसव के बाद मां के दूध में मिलने वाला कोलेस्ट्रम शिशु के लिए जरूरी होता है। प्रसव होने के एक सप्ताह पहले से ही मां के दूध में कालेस्ट्रम बनने लगता है। नवजात बच्चे के लिए कोलेस्ट्रम एक प्रकार से काम्पेक्ट वैक्सीन की तरह से काम करता है। जन्म के तत्काल बाद शिशु को स्तनपान कराने से रक्तस्त्राव बंद हो जाता है।
कार्यशाला में बताया गया कि यदि माता को सामान्य प्रसव हुआ है तो भी जन्म के 15 मिनट से आधे घंटे के भीतर शिशु को स्तनपान कराना शुरू कर देना चाहिए। यदि प्रसव सीजन आपरेशन के द्वारा हुआ हो और मां बेहोश हो तब भी शिशु को औंधा मां के ऊपर लिटा देना चाहिए। शिशु स्वयं स्तनपान करने लग जाता है। यदि मां स्वयं कुपोषित होगी तो उसका बच्चा भी कुपोषित होगा। यदि माता टी.बी. की मरीज है या एच.आई.व्ही. पाजेटिव है तब भी उसे अपने शिशु को स्तनपान अवश्य कराना है। मां का टी.बी. का ईलाज चल रहा है और शिशु को बी.सी.जी. का टीका लग चुका है तो उसे स्तनपान कराने में कोई खतरा नहीं है।
कार्यशाला में बताया गया कि जन्म के बाद बच्चे को कुछ लोग घुट्टी, शहद या पानी आदि पिलाते है, यह पूरी तरह से गलत है। शिशु को 6 माह तक केवल मां का दूध ही पीना है। मां का दूध ही शिशु के लिए सम्पूर्ण एवं सर्वोत्तम आहार है। बच्चे को 6 माह के बाद ही ऊपरी आहार दें। लेकिन इसके साथ बच्चे को स्तनपान भी कराना चाहिए। स्तनपान कम से कम दो साल तक कराना चाहिए। मां जब तक शिशु को स्तनपान करायेगी तब तक उसके पुन: गर्भवती होने की संभावना नहीं रहेगी। इस प्रकार से देखा जाये तो स्तनपान एक तरह से प्राकृतिक गर्भनिरोधक का काम करता है और दो बच्चों के बीच अंतर रखने में भी मददगार बनता है।
कार्यशाला में बताया गया कि कुछ महिलायें शिशुओं को बोतल से दूध पिलाती है। यह पूरी तरह से गलत है। जन्म के बाद शिशु को संक्रमण का सबसे अधिक खतरा रहता है। स्तनपान कराने से शिशु डायरिया, निमोनिया एवं संक्रमण से बचा रहता है। लेकिन बोतल से दूध पिलाने से शिशु को डायरिया, निमोनिया और संक्रमण का खतरा हो जाता है। 50 प्रतिशत शिशुओं की इसी कारण से मृत्यु हो जाती है।
कार्यशाला में बताया गया कि पढ़ी लिखी आधुनिक महिलायें अपना फिगर खराब होने के डर से शिशु को स्तनपान नहीं कराती है। जबकि यह पूरी तरह से गलत धारणा है। शिशु को स्तनपान कराने से माता को स्तन केंसर एवं गर्भाशय का केंसर नहीं होता है। माता जितने अधिक दिनों तक शिशु को स्तनपान करायेगी उसे स्तन केंसर एवं गर्भाशय का केंसर होने का खतरा उतना ही कम होगा। विदेशों में स्तन केंसर के अधिक प्रकरण होने का कारण वहां की महिलाओं द्वारा स्तनपान नहीं कराना है।